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बनेगा ही। मुख्य बात है कामना की। गुणों की कामना और बहुमान ही हमें गुणी बना सकता है। जिन-जिन गुणों का अपने जीवन में अभाव हो उन-उन गुणों के धारकों के प्रति हृदय में आदर भाव लाना चाहिए। अगर गुस्सा बहुत आता है तो गजसुकुमार मुनि आदि क्षमावतार मुनियों का ध्यान धरना। अहंकार/अभिमान सताता हो तो नम्रता के शिखर गुरू गौतमस्वामी का ध्यान धरना । माया-कपट सताये तो मल्लिनाथजी का ध्यान धरना । लोभ सताये तो पुणिया श्रावक का स्मण करना। जिनको विषय सताता हो उनको स्थूलभद्रजी विजय शेठ विजया शेठाणी का स्मरण करना चाहिए। ऐसी विचारधारा से ध्यान से और स्मरण से आदमी दोषमुक्त बनता है, और गुणो से भरता जाता है। शिक्षक- मोटर साईकिल में कितने पहिये होते हैं? ढब्बू : छह। शिक्षक : छह कैसे? ढब्बू सर मोटर में चार और साइकिल में दो पहिये हाते हैं तो मोटर साइकिल के मिलाकर कुल छह होते है न! इसि तरह गुणानुराग और गुण प्रशंसा से अपनी जिन्दगी में भी गुणवृद्धि होती हैं।
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