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हर प्रकार की योग्यता है, वह आपके इस कार्य को आसानी से कर सकता है। अच्छा! तब फिर मैं बीरबल को आज्ञा कर देता हूँ। कुछ देर बाद अकबर ने बीरबल को बुलाया और स्वर्ग में जाकर अब्बाजान/पिताजी के समाचार लाने का आदेश दिया। बीरबल को हजाम के षड्यंत्र की गंध आ गयी। तुरंत ही उसने बादशाह को कहा कि आगामी पूर्णिमा के दिन आग मे प्रवेश कर, स्वर्ग में पहुँचकर आपके अब्बाजान की खबर ले आऊंगा। बीरबल ने चिता की भूमि के नीचे सुरंग-भूगर्भ खुदवा दिया। और पहले से ही सुरंग के भू-भाग के ऊपर चिता तैयार करवा दी थी। पूर्णिमा का दिन आ गया। भव्य जुलुस के साथ बीरबल स्मशान भूमि में पहुंच गया। वहाँ पहुँचकर बीरबल ने चिता में प्रवेश किया। हजाम के मंत्रोच्चार के साथ ही चिता में आग लगा दी और उधर उसी समय बीरबल गुप्त रूप से सुरंग में पहुँच गया। चिता की ज्वालाएं उपर उठने लगी। हजाम सोच रहा है, चलो अच्छा हुआ, पाप गया। रात को बीरबल भू–मार्ग से अपने भवन में आ गया। बराबर दो महिने बाद बीरबल अकबर बादशाह की सभा में उपस्थित हुआ। बीरबल की जटा, दाढी, मुंछ काफी बढ़ चूकी थी। बादशाह ने पूछा क्यों बीरबल जन्नत में जाकर आ गए? क्या खबर है? खैरियत तो है न? बीरबल ने कहा- जहांपनाह! जन्नत में आपके अब्बाजान आदि मजे में है परन्तु । परन्तु क्या? अकबर ने कहा । सम्राट! जन्नत में हर तरह की सुख-सुविधाएँ हैं परन्तु जटा और दाढ़ी बनाने के लिए कोई हजाम नहीं है। अतः अब्बाजान ने एक हुशियार/ दक्ष हजाम को बुलाया है। देखो न! मैं वहां दो महिने रहा तो मेरी भी दाढ़ी कितनी बढ़ गई है? तुरंत ही बादशाह ने हजाम को आदेश देते हुए कहा भाई! तुम्हे जन्नत में जल्दि जाना होगा। बादशाह की आज्ञा सुनते ही हजाम को पानी छुट गया। वह कुछ भी बोल नहीं पाया। अगले ही दिन हजाम को भव्य जुलुस के साथ स्मशान ले जाया गया और उसे जिंदा ही अग्नि में प्रवेश करना पड़ा। बीरबल से की गई इर्ष्या उसे ही खा गई क्योंकि इर्ष्यालु दूसरे का नहीं खुद का ही विनाश करता
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