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गुजरता था। वहाँ एक ट्रक फंस गया, सामान काफी ऊँचाई तक लदा था। न इस तरफ आ सके न उस तरफ जा सके उस वजह से पूरा ट्राफिक रूक गया। पुलिस अधिकारी आये कुछ उपाय न मिला कोशिश की खिंचने की, इंजिनियर आया। कुछ न समझ पाये कि क्या करना? इतने ट्रक इस तरफ रूक गये, शोरगुल मच गया, लोगों की भीड़ लग गई। एक आदमी ने कहा मेरी कोई नहीं सुनता । गरीब आदमी डंडा लिये किनारे खड़ा था, कहा ट्रक की हवा क्यों नहीं निकाल देते? जहाँ बड़े इंजिनियर मौजुद हो वहाँ उसकी कौन सुने? वह ठीक कह रहा था हवा ही निकालनी पड़ी और ट्रक तुरन्त बाहर निकल गया।
एक था शेठ । वह सो रहा था। रात में लक्ष्मीने उसे दर्शन दिये और कहा शेठजी इस घर में रहते-रहते मुझे बहुत दिन हो गये, बहुत समय हो गया अब में इस घर से जाना चाहती हूँ। जैसे आपका भी कभी मन पीकनीक जाने का करता है। तीर्थयात्रा जाने का करता है, बाहर घूमने जाने का करता है। जैसे मन का स्वभाव चंचल है वैसे लक्ष्मी का स्वभाव भी चंचल है। तो लक्ष्मीजी ने कहा मैं जाना चाहती हूँ, मेरा मन घुमने का हो रहा है इसलिए मैं आज्ञा चाहती हूँ। शेठ तो बहुत घबराया, बहुत परेशान हुआ उसने हाथ जोड़कर कहा देवी ऐसा मत करो आप जाओगी तो मैं बेसहारा हो जाऊंगा असहाय हो जांऊगा, अनाथ हो जांऊगा बेचारा हो जांऊगा। अगर हमसे कुछ गलती हो गई हो कुछ कसुर हो गया हो तो क्षमा कर दिजिये । लक्ष्मी ने कहा ना मैंने जाने का सोच लिया है निर्णय कर लिया है संकल्प कर लिया है। जरूर जाऊंगी। लेकिन हाँ इतना जरूर है तुम्हारे साथ रहते-रहते मुझे बहुत दिन हो गये तुसमे थोड़ा सा प्रेम हो गया तुमसे थोड़ा सा प्यार हो गया तुमसे थोड़ा लगाव हो गया इसलिए एक काम करो कि कोई एक वरदान जो मांगना चाहते हो मांग लो। शेठ ने कहा ठीक है अगर आप नहीं मानती तो ठिक है एक वरदान मैं मांगूंगा लेकिन मुझे एक दिन का समय चाहिए एक दिन की महोलत चाहिए। लक्ष्मी ने तथास्तु कहा और वह अंतर्ध्यान हो गई। दूसरे दिन शेठ ने
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