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उत्साह दुगुना हो जाता हैं माना कि गुणियों का बहुमान करना चाहिए परन्तु उससे लाभ क्या होगा? उनके गुण उनके पास है, हमें क्या लाभ? किसी करोड़पति का बहुमान करने से क्या करोड़पति बन सकते है? याद रखो और अच्छी तरह से याद रखो कि करोड़पति का बहुमान करने से करोड़पति बनेंगे या नहीं बनेंगे परन्तु गुणीजनों के बहुमान से तो गुणी बनेंगे ही। क्योंकि रूपये पैसे बाहर से मिलने वाली चीज है जबकि गुण भीतर से पैदा होने वाली चीज है। अंदर का सब कुछ अपने हाथ में है जबकि बाहर का कुछ भी हाथ में नहीं हैं। दूसरे में जो गुण है वो हम में भी गुप्त रूप से पड़े हुए हैं। शुसुप्त रूप से पड़े हुऐ है उन्हें मात्र प्रगट करने की जरूरत है। गुणियों को देखकर हमें ये विश्वास होता है कि हम भी गुणी बन सकते हैं। जैसे भीतर सोया सिंह, सिंह की गर्जना सुनकर जाग उठता है। वैसे गुणी के बहुमान से हममें निष्क्रिय सोये हुए गुण जाग्रत बन जाते हैं। वो गुणी बन सकते है तो हम भी बन सकते हैं। हम से जो अधिक गुणवान हो या समान गुणवाले हो ऐसे लोगों के साथ रहना चाहिए। गुणवानों के संग में रहेंगे तो गुणवान बनेंगे इससे विपरीत गुणहीन के संग में रहेंगे तो गुणहीन बन जायेंगे। हम जिनका बहुमान करते है जाने-अनजाने उन्हीं की तरह होते जाते हैं। यह एक अनुभवसिद्ध सत्य है। अपना निरीक्षण करना हम हकिकत में क्या चाहते है? किसे पूजते है, जिसे पूजते होंगे या चाहते होंगे वह मिल जाएगा। भगवान के दर्शन-पूजन किसलिए करने? क्योंकि भगवान के पास गुणों का उत्कृष्ट वैभव हैं। उनका दर्शन-पूजन करने से अपने में भी वे गुण (आहिस्ता-आहिस्ता) उतरते हैं। पद्मविजयजी महाराज ने आदिनाथ परमात्मा के स्तवन में यही बात कही है। जिन उत्तम गुण गावता गुण आवे निज अंग। गुणियों के गुणगान और बहुमान से उन गुणों का हममें अविर्भाव होता है। करोड़पति या अबजपति का बहुमान करने से कोई करोड़पति अबजपति नहीं बनता होगा। परन्तु उसके मन में ये इच्छा तो जरूर होती है कि मुझे भी करोड़पति अबजपति बनना है। एक बार उसकी कामना भीतर में तीव्र बनेगी तो आदमी उस चीज के लिए प्रयत्नशील
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