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निंदा कैसे कर सकते हैं? इसीलिए कहता हूँ किसी भी जीव का धिक्कार परमात्मा का धिक्कार है। किसी भी आत्मा का अपमान प्रभु का अपमान है।
महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत तुकाराम के पूना जिल्ले में अनेक भक्त थे। दुनिया का यह नियम है। जिनका आदर होता है उनका अनादर भी होता है। जिन की स्तुति होती है उनकी निंदा भी होती है। जिनके भक्त होते है उनके विरोधी भी होते हैं।
संत तुकाराम का भी शिवराम कंसारा नामक विरोधी था। एक दिन एक भक्त तुकाराम के पास आया। उसने कहा संतजी! सिर पे बेटी की शादी का प्रसंग हैं, हाथ में एक भी रूपया नहीं है। तो मैं क्या करूं? संत तुकाराम ने कहा अगर तुझे मदद चाहिए तो शिवराम कंसारा के पास चला जा । वो तेरी मदद करेगा। भक्त सोच में डूब गया। क्योंकि शिवराम संत तुकाराम का कट्टर शत्रु था। उसकी जानकारी उसे थी। भक्त को विचार में डूबा देख संत ने कहा
ज्यादा सोच मत, शिवराम को मेरा नाम देकर मदद के लिए कहना। भक्त शिवराम के पास पहुंचा और कहा- मुझे तुकाराम ने भेजा है। मेरे घर शादी का प्रसंग है। आप मेरी मदद करो न! मैं क्या तेरी मदद करूं? तेरा तुका ही तेरी मदद करेगा। यूं कह कर गुस्से ही गुस्से में शिवराम ने भक्त पर ताम्बे का एक सिक्का फेंका। भक्त के सिर पर सिक्का जोर से लगा। ताम्बे के सिक्के को सहाय/मदद समझकर भक्त ने उठा लिया और सीधा ही तुकाराम के पास चला आया। उसने तुकाराम से सारी बात कही। तुकाराम ने कहा तु चिन्ता मत कर । उस ताम्बे के सिक्के को तू भट्टी में तपा। भक्त ने वैसा किया तो आश्चर्य जनक बात हुई । भट्टी की गर्मी से थोड़ी ही देर में ताम्बे का सिक्का सोने में बदल गया। भक्त ने उस सोने के सिक्के से शादी का प्रसंग धूमधाम से मनाया (पुरा किया) ताम्बे का सिक्का सोने में बदल गया यह खबर देखते ही देखते चारों तरफ फैल गई। खुद शिवराम कंसारा को भी जब ये समाचार मिले तब उसे भी आश्चर्य हुआ। वह मानने लगा कि तुकाराम के पास जरूर पारसमणि होगा। उसके प्रभाव से सिक्का सोने का बन गया लगता है। मैं भी तुकाराम की सेवा
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