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प्रातसेवाधिकार पाये जाते हैं अतः उन सबको क्रमसेंचार जगह-२-२-२-२ रखकर परस्पर गुणा करने पर दोपोंकी सोलह संख्या निकल आतो इसीको बतलाते हैं-पूर्व भंग आगाढकारणकृत ओर अनागाढकारणकृत ये दोनों ऊपरके सकृत्कारी और असत्कारीमें पाये जाते हैं. अतः दोनोंको परस्परमें गुणने पर चार भेद हो जाते हैं। ये चारों अपने ऊपरके सानुवाची में पाये जाते हैं अतः चारसे दो को गुणने पर पाठ होते हैं । तथा ये आठ अपनेसे ऊपरक प्रयत्नमतिसेवी ओर अभयत्नमतिसेवीमें पाये जाते हैं इसलिए आठ को दोस गुणा करनेसे दोपोंको सोलह संख्या निकल आती है ॥१८॥ भंगायामप्रमाणेन लघुर्गुरुरिति क्रमांत् । प्रस्तारेऽत्राक्षनिक्षेपो द्विगुणो द्विगुणस्ततः॥१९॥
अर्थ- मस्ताररचनामें भंगोंके आयाम प्रमाणके अनुसार लघु और गुरु ये क्रमसे स्थापित किये जाते हैं। तथा द्वितोयादि. पंक्तियों में वे दूने दुने स्थापित किये जाते हैं । भावार्थ-लघु नाम एकका और गुरु नाम दोका है। भंगोंका प्रमाण सोलह और पंक्ति चार हैं। प्रथम पंक्तिमें सोलह जगह एक लघु और एक गुरु एकान्तरित स्थापित करे १२.१२, १२ १२ १२ १२,१२१२। दूसरी पंक्तिम दो लघु और दो गुरु एवं द्वयन्तरित ११२२, १.१.२२, ११२२,११२२, तीसरी पंक्तिमें चार लघु पार चार गुरु एवं चतुरंतरित ११११,२२