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प्रतिसेवाधिकार। . उद्देशानुसार पहिले प्रतिसेवाका कथन करते हैं,-- निमित्तादनिमित्ताच प्रतिसेवा द्विधा मता। कारणात् षोडशोद्दिष्टा अष्टभंगास्तथेतरे ॥१७॥
अर्थ-निमित्तसे और अनियित्तसे प्रतिसेवा दो तरहकी मानी गई है। उनमें भो कारणसे सोलह तरहको कही गई है। इसी तरह अकारसमें पाठ भंग होते ह । भावार्थ-उपसर्ग व्याधि आदि निमिचोंको पाकर दोषोंका सेवन करना और इन निमिचोंके विना दोपोंका सेवन करना इस तरह प्रतिसेवाके । दो भेद हैं। उनमें भी प्रत्येकके अर्थात् निमित्त प्रतिसेवाके सोलह और अनिपिच प्रतिसेवाके पाठ भेद होते हैं। ___ सारांश कारणकृत प्रतिसेवाके सोलह भंग और प्रकारणकृत प्रतिसेवाके पाठ मंग होते हैं ॥१७॥ सहेतुकः सकृत्कारी सानुवीची प्रयत्नवान् । तद्विपक्षाद्विकाः संति षोडशाऽन्योऽन्यताडिताः॥ __ अर्थ-सहेतुक-उपसर्गादि निपिचोंको पा कर दोषोंको सेवन करने वाला १सकृतारी-जिसका एक वार दोष सेवन करनेका खभाव है। सानुवीची-अनुवीची नाप अनुकूलता का है जो अनुकूलताकर सहित है वह सानुवीची है अर्थात विचारपूर्वक आगयानुसार बोलने वाला ३ और प्रयत्नवान१. चिः इत्यपि पाठः
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