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प्रतिसेवाधिकार। प्रथम ग्रन्थके अधिकारोंका कथन करते हैं:प्रतिसेवा, ततः कालः क्षेत्राहारोपलब्धयः । पुमांश्छेदो विपश्चिद्भिर्विधिः षोढात्र कीर्त्यते॥१६॥ ___ अर्थ-विद्वान् पुरुष इस प्रायश्चित्त-समुच्चय नामक अनादिनिधन शास्त्रमें छह अधिकारोंका वर्णन करते हैं । पहला प्रतिसेवा नायका अधिकार है जिसमें सचित्त, अचिच और मिश्रद्रव्यके आश्रयसे दोषोंके सेवन करनेका कथन है । उसके बाद दूसरा कालाधिकार है जिसमें शीतकाल, उष्णकाल
और वर्षाकालके आश्रयसे प्रायश्चित्त देनेका कथन है। उसके वाद क्षेत्राधिकार है जिसमें स्निग्ध, रूत, मिश्र आदि क्षेत्रोंके अनुसार प्रायश्चित्त देनेका वर्णन है। चौथा आहारोपलब्धि नामका अधिकार है जिसमें उत्कृष्ट, मध्यम और जयन्य आहार भाप्तिके अनुसार प्रायश्चित्त देनेका विधान है । उसके बाद पांचवां पुरुषाधिकार है जिसमें वह पुरुष धर्ममें स्थिर है या अस्थिर है, आगमज्ञ है या अनागमज्ञ है श्रद्धालु है या अश्रद्धालु है इत्यादि पुरुषाश्रित प्रायश्चित्तका कथन है । उसके बाद छठा प्रायश्चित्वाधिकार है जिसमें दशप्रकारके प्रायश्चित्तोंका वर्णन है ।। १६ ॥