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यदि कोई अग्नि में पड़कर मर गया हो तो उसके पीछे वाले को पचपन उपवास, अपनो जाति के पांच-पांच पुरुषों को अन्नदान, एक तीर्थ यात्रा, बीस भगवान के अभिषेक, गऊ-दान, केशर, चंदन, पुष्प, अक्षत आदि से भगवान की पूजा, अपनी शक्ति के अनुसार गुरु पूजा और भगवान के भण्डार में अपनी शक्ति के अनुसार द्रव्यदान देना चाहिए। इतना प्रायश्चित्त कर लेने पर वह शुद्ध और पंक्ति योग्य होता है। सो ही लिखा है।
मृतेऽग्नौ पातके जाते प्रोषधाः पंचपंचाशच् । पंचपंचान्नदानं च जिनाभिषेकविंशतिः ॥ तीर्थयात्रा च गोदानं गंध पुष्पातादयः । यथाशक्ति गुरुपूजा द्रव्यदानं जिनालये ||
सब प्रायश्चित्तों में प्रायश्चित्त लेने वाले पुरुष को अपने मस्तक का मुण्डन कराना चाहिए, केशर, अगुरु चंदन और पुष्पादिक पूजा के द्रव्य अपनी शक्ति के अनुसार जिनालय में देना चाहिए, यथायोग्य यह ग्रह पूजा करनी चाहिए, सम्यग्दृष्टि जैनी ब्राह्मणों को दान देना चाहिए, यथायोग्य रीति से चार प्रकार के संघ की पूजा करनी चाहिए और गृहस्थ श्रावकों को भोजन देना चाहिए। ये सब बातें यथायोग्य रीति से सब जगह समझ लेना चाहिए। यह सब प्रायश्चितों में समुच्चय प्रायश्चित्त है। सो ही लिखा है
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प्रायश्चित्तेषु सर्वेषु शिरोमुण्डं विधीयते । काश्मीरागुरुपुष्पादि द्रव्यदानं स्वशक्तितः ॥
ग्रह पूजा यथायोग्यं विप्रेभ्यो दान मुत्तमम् । संघपूजा गृहस्थेभ्यो हान्नदानं प्रकीर्तितम् ॥
यदि किसी स्त्री आदि का चाण्डाल आदि से संसर्ग हो जाए तो उसे पचास उपवास, पाँच सौ एकाशन, सुपात्रों को दान, तीर्थयात्रा, पचास बार पुष्प, चंदन, अक्षत आदि से भगवान की पूजा, संघ पूजा, मंत्र के जप, व्रत और जिनालय में द्रव्यदान देना चाहिए। इतना प्रायश्चित्त कर लेने पर वह शुद्ध और पंक्ति योग्य
प्रायश्चित विधान १४