Book Title: Prayaschitt Vidhan
Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya

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Page 114
________________ ACCINEERC यदि उस प्रसूता स्त्री को कन्या उत्पन्न हुई हो तो उस को दश दिन तक अनिरीक्षण नाम का सूतक लगता है और बीस दिन तक घर के काम काज करने के अधिकार न होने का सूतक है। इसके बाद पंद्रह दिन तक उसको जिन पूजा और पात्र दान देने का अधिकार नहीं रहता। इस प्रकार उस कन्या को उत्पन्न करने वाली स्त्री के लिए पैंतालीस दिन का सूतक जिनेन्द्र भगवान के मत में माना गया है ।। १०२-१०३ ॥ जिण पण्ण सरं णिच्च, पत्तदाणा णु मोयणं । पणास एज्ज पावाणिं किं पुण समकिज्जेज्ज ।। १०४ ॥ जिन प्रज्ञास्मृतिर्भक्त्या, पात्रदानानुमोदनं । प्रणाशयति पापानि, किं पुनः स्वकृते चते ॥ १०४ ॥ जिन पूजा और दान देख हर्षित हो, पाप नष्ट हो जाते हैं। स्वयं करे जो पूजा दान तो, कैसे पाप टिक पाते हैं ॥ १०४ ॥ जो पाप बुद्धि पूर्वक स्मरण करने, अनुमोदना करने मात्र से नष्ट हो जाते हैं तो स्वयं यदि पात्र दानादि करें तो क्या कहना ? अर्थात् जिन पूजा, सत्पात्रदानादि को देखकर जो हर्षित हो उसकी अनुमोदना करता है तो महान पापों को नाश कर देता है फिर स्वयं करे तो भला उसके पाप कैसे टिक सकते हैं ? नष्ट हो ही जाते हैं ॥ १०४ ॥ पायच्छित्तागम सुत्तं पायच्छित विहिं परं । पण्णुवएसगं णिच्च, पायच्छित्तं तणेज्जए ॥ १०५ ॥ प्रायश्चित्तागमेसूक्तः, प्रायश्चित विधिः परः । तज्ज्ञोपदेशतः शेषं प्रायश्चित्तं तनो हविः ॥ १०५ ॥ " दोष निवृत्ति को आगम में, कई प्रायश्चित्त विधान बतलाये । प्रायश्चित्त ज्ञाताओं के उपदेशों को सुन भव्य जीव उसे अपनाये ।। १०५ ।। आगम में अन्य दोषों की निवृत्ति के लिए विविध प्रकार के प्रायश्चित्तों का 44 प्रायश्चित विधान - ११७

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