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का बकरी का दूध प्रसूति के दिन से आठ दिन बाद शुद्ध होता है। इस सबका दूध ऊपर लिखे दिन से पहले शुद्ध नहीं होता।
यदि गोत्री चौधी पोटी एक का हो तो दस दिन की, पाचवी पीढ़ी का हो तो छह रात्रि का छठीं पीढ़ी वालों को चार दिन का, सातवीं पीढ़ी वाले को तीन दिन का, आठवी पीढ़ी वाले को एक दिन रात का नौंवी पीढ़ी वाले को दो पहर का, दसवीं पीढ़ी वाले को स्नान करने मात्र का सूतक लगता है। मुनि को अपने गुरु आदि के मरने का सूतक एक कायोत्सर्ग करने से शुद्ध होता है तथा राजा के पांच दिन का सूतक लगता है।
स्त्रियां जो रजस्वला होती है वह प्रकृति रूप से तथा विकृत रूप से ऐसे दो प्रकार से होती हैं। जो स्वभाव से ही प्रत्येक महीने योनिमार्ग से रूधिर का स्राव होता है वह प्रकृति रूप से होता है। जो असमय में ही रज:स्राव होता है उसको विकृति रूप कहते हैं वह दुषित नहीं है उसके होने पर केवल स्नान मात्र से शुद्धि होती हैं। यदि पचास वर्ष के बाद रजः स्राव हो तो उसकी शुद्धि स्नान मात्र ही है। स्त्रियों के प्रदर आदि अनेक रोगों के कारण रजःस्राव होता है तथा विकार रूप होता है वह राग की उत्कृष्टता से होता है। जो बाहर वर्ष की अवस्था से लेकर पचास वर्ष तक प्रतिमास रजो धर्म होता है वह काल रजोधर्म है । इसके बाद अकाल रूप कहा जाता है। इस प्रकार इसके दो भेद हैं। जिस दिन स्त्री के रज का अवलोकन हो उस दिन से लेकर तीन दिन अशीच है। यदि उस दिन आधीरात तक रजो दर्शन हो तो भी पहला दिन समझना चाहिए। रात्रि के तीन भाग करना चाहिए उसमें से पहला और दूसरा भाग हो उसी दिन में समझना चाहिए और पिछला एक भाग दूसरे दिन की गिनती में लेना चाहिए। ऐसी आम्नाय है।
यदि ऋतु काल के बाद फिर वही स्त्री अठारह दिन पहले ही रजस्वला हो जाय तो वह केवल स्नान मात्र से ही शुद्ध हो जाती है। यदि कोई स्त्री अत्यन्त यौवनवती हो और वह रजस्वला होने के दिन से सोलह दिन के पहले हो फिर रजस्वला हो जाय तो वह स्नान मात्र से शुद्ध हो जाती है तथा रजस्वला होने के दिन से यदि अठारह दिन के पहले ही रजस्वला हो जाय तो वह स्नान मात्र से शुद्ध प्रायश्चित विधान १३७
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