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जैन शास्त्रों में तीन प्रकार के स्नान कहे गये हैं - जलस्नान, व्रत स्नान और मंत्र स्नान । इनमें से जल स्नान गृहस्थों के लिए बतलाया है तथा साधुओं को व्रत स्नान और मंत्र स्नान कहा गया है। (इति आर्यिका दंड विधान)
सूतक दो प्रकार का है जो गृहस्थ के घर पुत्र-पुत्री आदि का जन्म हो तो दस दिन का सूतक है। यदि मरणको तो बारह दिन का
स्त र में जा बिस क्षेत्र में प्रसूति हो उसका सूतक एक महीने का है। यह सूतक जिसके घर जन्म हो उसको लगता है। जो उसके गोत्र वाले हैं उनको पांच दिन का सूतक लगता है ! यदि प्रसूति में ही बालक का मरण हो जाय तो अथवा देशांतर में किसी का मरण हो जाय या किसी संग्राम में मरण हो जाय अथवा समाधि मरण से प्राण छोड़े हों तो इन सबका सूतक एक दिन का है। घोड़ी, गाय, भैंस, दासी आदि की प्रसूति यदि अपने घर में या आंगन में हो तो सूतक एक दिन का है। यदि इनकी प्रसूति घर के बाहर किसी क्षेत्र में या बगीचे में होता है उसका सूतक नहीं लगता। जिस गृहस्थ के यहां पुत्रादि का जन्म हुआ हो तो उसको बारह दिन पीछे भगवान अरहंत देव का अभिषेक, जिनपूजा और पात्र दान देना चाहिए तब उसकी शुद्धि होती है। अन्यथा शुद्धि नहीं होती। यदि दासी दास या कन्या की प्रसूति या मरण अपने घर हो तो उस गृहस्थ को तीन दिन का सूतक लगता है। वह प्रसूति या मरण अपने घर हुआ है अत: दोष लगता है। यदि किसी गृहस्थ के स्त्रियों के गर्भपात हो जाय तो जितने महीने का वह गर्भ हो उतने दिन का सूतक होता है। इसमें भी क्षत्रियों को पांच दिन, ब्राह्मणों को दस दिल, वैश्य को बारह दिन का
और शूद्र को पंद्रह दिन का सूतक होता है। ___ लौकिक में जो सती होती है उसके बाद रहने वाले घर के स्वामी को उसकी हत्या का पाप छह महीने तक रहता है । छह महीने बाद प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध होता है। जिसके घर में कोई सती हो गई हो उसको छह महीने पहले प्रायश्चित्त देकर शुद्ध नहीं करना चाहिए। यदि कोई अपघात करके धर जाय तो उसके बाद रहने वाले घर के स्वामी को यथायोग्य प्रायश्चित्त देना चाहिए । भैंस का दूध , प्रसूति के दिन से पंद्रह दिन बाद, गाय का दूध प्रसूति के दिन से दस दिन के बाद
प्रायश्चित विधान - १३६