Book Title: Prayaschitt Vidhan
Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya

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Page 135
________________ हो जाती है। यदि उसके अठारहवें दिन ही रजोधर्म हो तो दो दिन का सूतक पालन करना चाहिए। यदि उसके उन्नीसवें दिन रजोधर्म हो तो उसको तीन दिन तक अशौच पालन करना चाहिए। यदि रजस्वला होने के बाद चौथे दिन स्नान कर ले और फिर रजस्वला हो जाय तो वह अठारह दिन तक शुद्ध नहीं होती। ___यदि कोई स्त्री अपने समय पर रजस्वला हुई हो तो उसको तीन दिन तक ब्रह्मचर्य पूर्वक रात्रि में किसी एकांत स्थान में जहां मनुष्यों का संचार न हो ऐसी जगह डाभ के आसन पर सोना चाहिए । उसको खाट, पलंग, शय्या, वस्त्र, रुई का विछौना, ऊन का बिछौना आदि का स्पर्श न करें देव धर्म की बात भी न करें। संकुचित होकर प्राण धारण कर रहना चाहिए । गोरस रहित एक बार खा अन्न खाना चाहिए। नेत्रों में काजल, अंजन आदि नहीं डालें। उबटन लगाना, तेल लगाना, पुष्प माला पहनना, गंध लगाना आदि श्रृंगार के सभी साधनों का त्याग करना चाहिए। देव गुरु राजा और अपने कुल देवता का रूप दर्प में भी नहीं करना चाहिए। किसी वृक्ष के नीचे या पलंग पर नहीं सोना चाहिए। तथा दिन में भी नहीं सोना चाहिए। उसको अपने मन में पंच मोकार मंत्र का स्मरण करना चाहिए । उसका उच्चारण नहीं करना चाहिए। केवल मन में चितवन करना चाहिए। अपने हाथ में वा पत्तल में भोजन करना चाहिए । किसी भी धातु के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। यदि वह किसी तांबे, पीतल आदि के पात्र में भोजन करें तो उस पात्र को अग्नि से शुद्ध करना चाहिए । चौथे दिन गोसर्ग के बाद स्नान करना चाहिए। प्रातः काल से लेकर छह घड़ी पर्यंत गोसर्ग काल कहा जाता है। चौथे दिन स्नान करने के बाद वह स्त्री अपने पति और भोजन बनाने के लिए शुद्ध समझना चाहिए। देव पूजा, गुरु सेवा तथा होम कार्य में वह पांचवें दिन शुद्ध होती है। __ यदि कोई स्त्री इन ऋतु के तीन दिनों में रोती है तो उसके बालक के नेत्र विकृत, या अंधा या धुंधला या काना या ऐचकताना या ढेर या पानी बहना या लाल या मांजरी हो जाती हैं। यदि कोई स्त्री ऐसे तीन दिन में नाखून काटती है तो उसके बालक के नाखूनों में विकार फटे-टूटे, सूखे, काले, हरे. टेढ़े और देखने में प्रायश्चित विधान - १३८

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