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के मारने का डेढ़ महीने तक एकांतर उपवास और आदि अंत में तेला करें। किसी-किसी आचार्य मत में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र के मारने का प्रायश्चित्त आठ महीने, चार महीने, दो महीने और एक महीने तक एकातर उपवास और आदि अंत में तेला बतलाया है । इसी प्रकार घास-फूस खाने वाले पशु के मर जाने पर चौदह उपवास, मांस भक्षी पशु के मरने पर ग्यारह उपवास, पक्षी, सर्प, जलचर, लिपकली आदि जीदों के पाने पर भी रपवाम पायश्चित्त बताया है।
एक बार प्रत्यक्ष असत्य कहने का प्रायश्चित्त एक कायोत्सर्ग है एक बार परोक्ष असत्य कहने का प्रायश्चित्त दो उपवास है एक बार त्रिकोटि से असत्य कहने का तीन उपवास अनेक बार प्रत्यक्ष कहने का पंच कल्याणक है अनेक बार परोक्ष असत्यभाषण का पंच कल्याण है अनेक बार प्रत्यक्ष परोक्ष मिश्र असत्य कहने का पंचकल्याणक है अनेक बार त्रिकोटी से असत्य कहने का पंचकल्याणक है।
यदि मोह से एक बार परोक्ष चोरी करने पर एक कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त है एक बार प्रत्यक्ष चोरी करने पर एक उपवास है। यदि एक बार प्रत्यक्ष परोक्ष में चोरी करने पर दो उपवास है। यदि एक बार त्रिकोटी से चोरी करने पर तीन उपवास अनेक बार परोक्ष में चोरी करने पर पंच कल्याणक, अनेक बार प्रत्यक्ष चोरी करने पर पंच कल्यापाक, अनेक बार त्रिकोटी से चोरी करने पर पंचकल्याणक है।
यदि मुनि नियम रहित और देव वंदना सहित रात्रि में निद्राले और स्वप्न में वीर्यपात होने पर सौपवास प्रतिक्रमण यदि मुनि नियम सहित देववंदना पूर्वक रात्रि में निद्रा ले और स्वप्न में वीर्यपात होने पर सोपवास प्रतिक्रमण, यदि पिछली रात्रि में सामायिक से पूर्व वीर्यपात होने पर सोपवास प्रतिक्रमण यदि शाम की सामायिक के बाद नियम सहित सोने घर निद्रा में वीर्यपात हो जाय सोपवास प्रतिक्रमण, यदि सामायिक कर नियम सहित देव वंदना पूर्वक सोते हुए वीर्यपात होने पर प्रतिक्रमण सहित तीन उपवास, यदि कोई मुनि आसक्ति से स्त्री से भाषण करने पर प्रतिक्रमण सहित उपवास, यदि स्त्री का स्पर्श हो जाय तो प्रतिक्रमण पूर्वक उपवास, यदि किसी मुनि के मन में स्त्री का चितवन होने पर प्रतिक्रमण सहित उपवास प्रायश्चित्त है।
प्रायश्चित विधात - १२८
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