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यदि कोई मुनि तीन, चार घड़ी सूर्योदय से पहले अथवा गोसर्ग समय में एक बार आहार करे तो एक कायोत्सर्ग, यदि कोई मुनि तीन, चार घड़ी सूर्योदय से पहले या गोसर्ग काल में अनेक बार भोजन करे तो एक उपवास, यदि कोई मुनि रोग के वशीभूत होकर एक बार अपने हाथ से अन्न बनाकर भोजन करे तो एक उपवास, इसी प्रकार यांदे कोई मुनि किसी रोग के कारण कई बार अपने हाथ से भोजन बनाकर आहार करे तो तीन उपवास, यदि निरोग अवस्था में कोई मुनि अपने हाथ से बनाकर भोजन करे तो पंचकल्याणक, यदि निरोग अवस्था में कोई मुनि अनेक बार अपने हाथ से बनाकर आहार करे तो पुनर्दीक्षा प्रायश्चित्त है।
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यदि कोई मुनि दिन में काठ पत्थर आदि हटावें या दूसरी जगह रक्खें तो एक कायोत्सर्ग, यदि कोई मुनि रात्रि में काठ पत्थर को उठावें या हिलावें या दूसरी जगह रक्खें या रात्रि में इधर-उधर भ्रमण करे तो एक उपवास प्रायश्चित्त है ।
यदि कोई मुनि हरितकाय पृथ्वी पर रात्रि में एक बार मलमूत्र निक्षेपण करें तो एक कायोत्सर्ग, यदि वे बार-बार निक्षेपण करें तो एक उपवास प्रायश्चित्त है।
स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र में पांच इन्द्रियां हैं। यदि कोई मुनि अप्रमत्त होकर स्पर्शन इंद्रिय का विषय पोषण करें तो एक कायोत्सर्ग रसना इंद्रिय को वश में न करें तो दो कायोत्सर्ग, घ्राण इंद्रिय को वश में न करे तो तीन कायोत्सर्ग, चक्षु इन्द्रिय को वश में न करे तो चार कायोत्सर्ग, कर्ण इंद्रिय को वश में न करे तो पांच कायोत्सर्ग, यदि कोई मुनि प्रमादी होकर इन इंद्रियों को वश में न करे तो क्रमशः एक उपवास, दो उपवास, तीन उपवास, चार उपवास, पांच उपवास प्रायश्चित है |
यदि कोई मुनि वंदना आदि छहों आवश्यकों के करने में तीनों कालों के नियमों को भूल जाय अथवा समय का अतिक्रम हो जाय तो प्रतिक्रमण पूर्वक एक उपवास, यदि कोई मुनि तीन पक्ष तक प्रतिक्रमण न करें तो उसका प्रायश्चित्त दो उपवास, यदि कोई मुनि चातुर्मासिक प्रतिक्रमण न करें तो आठ उपवास, यदि कोई मुनि वार्षिक प्रतिक्रमण न करे तो चौबीस उपवास प्रायश्चित्त है।
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प्रायश्चित विधान १३१