Book Title: Prayaschitt Vidhan
Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya

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Page 127
________________ ARRRRRRRRRRRE m isit: में गमन करने पर एक उपवास, यदि गर्मी के दिनों में छ: कोस अप्रासुक भूमि में गमन करने पर एक उपवास, यदि गर्मी में रात्रि में छ: कोस अप्रासुक मार्ग से गमन करने पर दो उपवास है । यदि मुनि बिना पीछी के सात पैर तक चले तो एक कायोत्सर्ग, यदि बिना पीछी के एक कोस गमन करे तो एक उपवास है । यदि मुनि घुटने तक पानी में गमन करे तो एक कायोत्सर्ग यदि घुटने से चार अंमुल ऊपर तक पानी में गमन करे तो एक उपवास और इसके आगे प्रतिचार अंगुल पर दूने-दूने उपवास प्रायश्चित्त के हैं। यदि कोई मुनि लोगों में जाकर भाषा समिति में दोष लगाते हुए वचन कहे तो एक कायोत्सर्ग, यदि कोई सुनि सम्म घाटे श्रावक के दोष प्रकाशित करे तो चार उपवास यदि कोई मुनि जल, अग्नि, बुहारी, चक्की, उखली और पानी आदि कर्मों के वचन कहे तो तीन उपवास, यदि कोई मुनि श्रृंगारादि के गति स्वयं गावे का किसी से नवा. तो गार उप- प्रानस्चित्तौ ! ___यदि कोई मुनि बिना जाने कंदमूलादिक साधारण प्रत्येक सचित्त, अचित्त, वनस्पति एक बार भक्षण करे तथा अन्य वनस्पत्ति सचित्त भक्षण करें तो एक कायोत्सर्ग, यदि बिना जाने अनेक बार कंद मूलादिक वनस्पतियों का भक्षण करे तो एक उपवास, यदि कोई मुनि रोग के कारण कंदादिक वनस्पतियों का भक्षण करे तो एक कल्याणक, यदि कोई मुनि अपने सुख के लिए एक बार कंदादिक का भक्षण करें तो पंच कल्याणक, यदि कोई मुनि अपने सुख के लिए अनेक बार कंदादिक का भक्षण करें तो पुनर्दीक्षा प्रायश्चित्त है। ____ यदि मुनि के आहार ले लेने पर दाता कहे कि भोजन में जंतु था उसको दूर कर हमने आपको आहार दिया है नहीं तो अंतराय हो जाती ऐसा सुन लेने पर प्रतिक्रमण सहित उपवास, आहार लेते समय थाली के बाहर गीली हड्डी आदि भारी अंतराय दिखाई पड़े तो प्रतिक्रमण पूर्वक तीन उपवास, यदि भोजन में ही गीली हड्डी चमड़ा आदि भारी अंतराय आ जाय तोप्रतिक्रमण पूर्वक चार उपवास प्रायश्चित्त है। सम्प राम्परागत प्रायश्चित्त विधान - १३० R Firin AAAAAAtom:: t er : n ation ....... :...:::.:.:..:. ..............non-stre

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