Book Title: Prayaschitt Vidhan
Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya

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Page 13
________________ TEX इसलिए आगम में प्रायश्चित्त के लिए योग्य आचार्य का निर्देश दिया है। जो कि आवश्यक है। प्राचीन प्रायश्चित्त ग्रन्थ में गुरु दास विरचित प्रायश्चित्त समुच्चय एवं प्रायश्चित्त चूलिका नामक ग्रन्थ देखने में आता है उसमें उन्होने प्रायश्चित्त का विशद विवेचन किया है। जो कि श्रमण संहिता के लिए आवश्यक एवं जरुरी है परन्तु जिस प्रकार से श्रमण संहिता के लिए प्रायश्चित्त आवश्यक है उसी प्रकार से श्रावक (गृहस्थ ) के लिए भी दण्ड (प्रायश्चित्त) का विधान है जिसे कि मोक्ष मार्ग की प्रतिकूलता होने पर या व्रतादि को या विघटन होने पर था नियम व त्याग भंग होने पर प्रायश्चित्त की व्यवस्था है जैसे कि यदि कोई जैनी गृहस्थ श्रावक वा श्राविका के किसी कारण से अनाचार व हीनाचरण करने में आ जाय तो उस दोष को दूर करने के लिए क्या प्रायश्चित्त करना चाहिए ? इसके लिए आचार्यों ने प्रायश्चित्त की व्यवस्था इस प्रकार दी है यदि किसी श्रावक व श्राविका ने अपने अजानपन में बिना समझे मद्य-माँस मधु (शहद), बड़ फल, पीपल फल, गूलर, अंजीर और पाकर इन आठ वस्तुओं में से किसी एक वस्तु का भक्षण कर लिया हो तो उसको नीचे लिखे अनुसार प्रायश्चित्त देना चाहिए । अलग-अलग तीन उपवास करना, बारह एकासन करना जिसके साथ अपना पंक्ति भोजन है ऐसे एक सौ आठ पुरुषों को पंक्ति भोजन कराना, भगवान अरिहन्त देव की प्रतिमा का एक सौ आठ कलशों से अभिषेक करना, अपनी शक्ति के अनुसार केशर, चंदन, पुष्प, अक्षत आदि द्रव्यों से भगवान की पूजा करना, एक सौ आठ बार पुष्पों के द्वारा णमोकार मंत्र का जप करना और दो तीर्थ यात्रा करना, इस प्रकार प्रायश्चित्त लेने पर वह शुद्ध होता है पंक्ति में बैठने योग्य होता है। सो ही लिखा है - मद्यं मासं मधु भुक्ते अज्ञानात्फलपञ्चकम् । उपवासत्रयं चैक भक्तद्वादशकं तथा ॥ ७५ ॥ अन्नदानाभिषेकश्च प्रत्येकाष्टोत्तरं शतम् । तीर्थ यात्राद्वयं गन्धपुष्पाक्षतस्वशक्तितः ॥ ७६ ॥ TEXT III. "*c2X..Cre प्रायश्चित विधान १२ * - जिन संहिता twit

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