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पंचक्खर पदं मंतं सय अद्भुत्तरं भजे ॥ १० ॥ कालस्यैक विहीनानां, पूजायां परमेष्ठिनां । पंचाक्षरं पदं मंत्र, शतमष्टोत्तरं जपेत् ॥ १० ॥ एक काल के कम होने पर, पूजा परमेष्ठी की करें। णमो सिद्धाणं मंत्र का, १०८ बार जाप करें ॥ १० ॥
पंच परमेष्ठी भगवंतों की त्रिकाल पूजा का विधान आगम में उपदिष्ट है। यदि कोई एक काल का उल्लंघन हो आय अर्थात् कारणवश प्रमाद कषाय वश यदि न हो सके तो उसकी शुद्धि के लिए पंच परमेष्ठी वाचक महामंत्र णमोकार का एक सौ आठ बार जप करना शुद्धि के लिए आचार्यों ने प्रायश्चित्त कहा है। अर्थात् एक माला णमोकार मंत्र की जाप करने से दोष की शुद्धि होती है ॥ १० ॥ संज्झत्तयच्चणत्थोवं नियम जईणं सयं ।
एमत दुवो छिण्णा वि अण्णत्थ दुगुणं चरे ॥ ११॥
संध्या त्रयाचना संस्तोत्रं, नियम यतीनां सतं । एकत्रद्वयो छिन्नाया, मन्यत्र द्विगुणं चरेत् ॥ ११ ॥ यति नियम से अर्चना स्तोत्र, तीनों समय में करते हैं । एक दो या अन्यत्र भी, दो गुणों का आचरण करते हैं ।। ११ ।।
यतीश्वरों की पूजा-अर्चना व स्तुति करने का विधान तीनों संध्यायों में करने का नियम है। अर्थात् प्रातः, मध्यान्ह एवं संध्या काल में अर्चना व स्तोत्र स्तुति करना आवश्यक है। यदि इन कालों में से एक दो समय का उल्लंघन हो जाय तो दूना- दूना द्विगुण मंत्र जाप करें। अर्थात् एक संध्या चूकने पर एक माला दो समय न हो सके तो दो माला आदि । ११॥
आयावंते जवं कुज्जे मंतस्स दुत्तरं सयं । दुसज्झायार विंसओ कुज्जा सय जवं जवे ॥ १२ ॥
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प्रायश्चित्त विवान ७९
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