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पंच वर्ग घट न्यासः, सूत्राण्युक्तानि षोडश । मध्य नव घटाः ज्ञेयाः, कोण एको दिशि त्रयः ॥ २२ ॥ पांच वर्गों में सूत्रों से युक्त सोलह घटों को स्थापित करें । नव्यम में नव को कोण की एक दिशा में तीन घटों को स्थापित करें ॥
सूत्र से आवेष्टित कर अर्थात् पंचवर्ग के सूत्रों से वेष्टित घटों की स्थापना करें | सोलह कलश चारों दिशाओं में चार-चार स्थापित करें। प्रत्येक कोण विदिशाओं में तीन-तीन कुंभ स्थापित करें तथा मध्य में नौ कुंभ स्थापित कर यथा विधि अभिषेक करना चाहिए ॥ २२ ॥
साहाणं अइक्कतं, दिवसेसु दसेसु अवि । पण्णासयप्प मेज्जेज्ज कुंभण्हाण जस क्कमा ॥ २३ ॥
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स्वानुष्ठानं चाति क्रांती दिवशेषु दशष्वपि । पंचाशत प्रमिते कुंभै:, संस्नापयेशं यजेक्रमात् ॥ २३ ॥ अतिक्रान्त कर दश दिन में, स्व अनुष्ठान पूर्ण करना । शोभने योग्य पच्चास घड़ों को, क्रम से रखना ॥ २३ ॥
दश दिवस पर्यंत यदि अपना अनुष्ठान नित्य नियम क्रिया कलाप का समय उल्लंघित हो जाय तो उसके प्रायश्चित्त दोष शुद्धि के लिए पांच सौ कुंभ कलश स्थापित कर क्रमश: अभिषेक सहित जिनेश्वर की पूजा अर्चना करें ॥ २३॥ चउस्सइजुयं मंतं, सहस्साणं चउण्हं च ।
मणीहिं च करे पुष्पं, जब स्सय परम्मेहिं ॥ २४ ॥
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चतुः शति युतं मंत्रं, सहस्राणं चतुष्टयं । मणिभिश्चकारिः पुष्पै, पशत्-परमेष्ठीनां ॥ २४ ॥ चारसों से युक्त, अड़तालीस हजार मंत्र का जाप करें। मणियों व पुष्पों से, पंच परमेष्ठी का जाप करें ॥ २४ ॥
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प्रायश्वित्त विधान - ८४
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