________________
पंचिदियभेव सण्णं पमाआओ ज हिंसए। कल्लाण विहिणा मंतं सहस्स दसगं भजे ॥ ६७॥
पंचेन्द्रियमेव संज्ञस्य, प्रमाद्धिंसने सति । कल्याणविधिनामंत्रं, सहस्रदशकं जपेत् ।। ६७ ।।
आलस करने पर, संझी पंच इन्द्रिय की होती है। उसके पाप निवारण को, दस सहस्त्र जाप विधि होती है.।। ६७ ॥
प्रमादवश पंचेन्द्रिय असंज्ञी व संज्ञी जीव का घात होने पर अर्थात् मन सहित संज्ञी और मन रहित असंज्ञी पंचेन्द्रिय का असावधानी (प्रमाद) से घात हो जाय तो उसका प्रायश्चित्त एक कल्याण और विधिवत् दश हजार महामंत्र का जप करना चाहिए ॥ ६७ ।। तथा
सव्वं सुद्धि महठ्ठाणं काउस्सगं दसं वि हि। सत्तीए पदायव्वं दाणं णाणं च झाणं च ।। ६८॥
सर्व शुद्धि महास्नानं, कायोत्सर्ग दशापि च । दानं शक्त्या प्रदातव्यं, ज्ञानं ध्यानं कृतादरः।। ६८ ॥
सर्व शुद्धि महास्नान से, कायोत्सर्ग करें। दान शक्तिनुसार दे, तब ज्ञान, ध्यान करें ।। ६८ ॥ पूर्ण शुद्धयर्थ - पूर्ण शुद्धि से महामस्तकाभिषेक, दश कायोत्सर्ग तथाशक्ति अनुसार दान देना चाहिए एवं सावधानी से निष्प्रमादी हो - आदर से ज्ञानाराधन व ध्यान भी करना चाहिए ।। ६८।।
सण्णी पंचिदियं जाणे, दुगुणं च विहिं चरे। उववासत्तयं पुन्वं, अहिसेगं तहा वयं ॥ ६९ ॥
संज्ञी पंचेंद्रिये प्रोक्तं, द्विगुणं विधिमाचरेत् । उपवासं त्रयं वा-स्या, दभिषेकं वयं तथा ॥ ६९।। संज्ञी पंचेन्द्रिय के, दो गुणों से विधि का आचरण करें।
तीन उपवास कर, दो बार अभिषेक करें ॥१९॥
प्रायश्चित्त विधान - १०३