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xrrrrrrrr भुतंतरं विहिं वुच्ने, परमागम सुत्तओ। तेण विहि उवाएणं, सत्तीए अणुठावए ॥७८॥
भुक्त्यंतर विधि प्रोक्तः, परमाचार सूत्रतः । तद्विधिज्ञोपदेशेन, शक्त्यानुष्ठीयते परं ॥७८ ।। भोजन सम्बन्धित, जो विधि कही, वही परम सूत्र है। इस विधि अनुसार, यथा शक्ति अनुष्ठान करें ।। ७८ ।।
भोजन करते समय व उसके अनंतर की जो जो विधि विधि के ज्ञाता के उपदेश द्वारा अपनी शक्ति के अनुसार अनुष्ठान करने चाहिए ।। ७८ ।।
अच्छाइयम मिस्सिगं जइ भुंजे पमाअओ। तक्खणे समधीरं कुब्वे ठाणं तयं पुरा ॥ ७९ ॥
अच्छादिमिश्रितमादौ, यदि भुक्ते प्रमादतः ।
तत्क्षणे समुद्धीर्य, कुर्यात्स्नानं त्रयं पुरा ॥ ७९ ॥ किसी प्रकार अच्छादि या प्रमाद होने से अशुद्ध अवस्था होय । तब तुरन्त ही तीन बार स्नान कर शुद्ध अवस्था होय ॥ ७९ ॥
यदि भोज्य वस्तु सचित्त (जीवादि) मिश्रित हो और प्रमादवश प्रथम देखने में न आवे अर्थात् इंद्रिय गोचर न हो सकी और खाने में आ गई, पुनः ज्ञात होने पर भोजन त्याग करे । और स्नान करे। या अस्पृश्य से छुआ हो तो स्नान करें ।। ७९ ।।
थालिं अण्णं च सुदुत्ता अट्टि सव्वं परिवए। कंस कारेण कंसाई भस्स अग्नि पसोहेज्ज ॥ ८० ।।
स्थालीं तदन्न संवृत्ता, मार्ति सर्वां परित्यजेत् । कंसकारेण कंसादि, भस्माग्निभ्यां च शोधयेत् ॥ ८० ॥
अन्न थाली का रजस्वला का उसका पूरा त्याग करे। उस बर्तन को मांज राख से अग्नि से उसे शुद्ध करें ।। ८० ॥
प्रार्याश्वत विधान - १०७