________________
wwwwwwwwwwalaangimotio
A TIANIMAMANMAHILMS
अतएव सूतक पातक मानने से द्रव्य शुद्धि होती है, द्रव्य शुद्धि होने से भाव शुद्धि होती है और भाव शुद्धि होने से चारित्र निर्मल होता है ॥ ८८ ।।
जराणं सुभगं सव्वं राग होसग कारणं । जाएज्जए हि तेणं च हरिस सोग हिंसगं ॥ ८९ ।।
नराणां सूतकं रागद्वेषयोर्मल कारणं। ताम्यामत्र प्रजायेते हर्षशोको स्व हिंसकौ ।। ८९ ॥
शास्त्र विषै प्रायश्चित्त के, सूक्त बताये होय। दही निषि उत्ता जड़ी, जानी के सन लोड़ !! १९ ॥ इस जगत में मनुष्यों का सूतक रागद्वेष का मूल कारण है, तथा राग द्वेष से अपने आत्मा की हिंसा करने वाले हर्ष और शोक प्रगट होते हैं। मनुष्य जन्म में भी धर्म की स्थिति शरीर के आश्रित है। इसलिए मनुष्यों के शरीर की शुद्धि होने से सम्यग्दर्शन और व्रतों की शुद्धि करने वाली धर्म की शुद्धि होती है ।। ८९ ॥
अहवं रोद्दा चेव मइ घायं च जाएज्ज। असुई च अणिछं च सुव्वय कारगं खाए॥ १०॥
आर्तवं सौतिकं चैव मार्त्यवं तत्सुसंगमः। अशौचं कथितं देवैः द्विजानां सुब्रतात्मनां ॥ १० ॥
तीनों संध्याओं में मन, भक्ति से नमन कर, पांचो गुरुओं को इसी विधि से नमस्कार करता हूँ। __इन पांचों का स्मरण व जाप कर, मन,
वचन, काय से आदर पूर्वक भजता हूँ ॥१०॥ भगवान जिनेन्द्र देव ने व्रत करने वाले ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को चार प्रकार का सूतक बतलाया है। पहला अतीव अर्थात् स्त्रियों के ऋतुधर्म वा मासिक धर्म से होने वाला, दूसरा सौतिक अर्थात् प्रसूति से होने वाला, तीसरा मार्तव अर्थात् मृत्यु से होने वाला और चौथा उनके संसर्ग से होने वाला माना गया है । ९० ॥
Kaskotkalese
प्रायश्चित्त विधान - १११