Book Title: Prayaschitt Vidhan
Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya

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Page 110
________________ rrrrrrrrrrrrrrrrसराससससससा मात पिता भाई आदि दूर देश मर जाय। चार पीढ़ी तक दश दिन कहे, दूरवर्ती का एक दिन होय ॥ ९३ ॥ यदि अपने माता-पिता वा भाई दूर देश में मर जाय तो पुत्र वा भाई को पूर्ण दश दिन का सूतक मानना चाहिए। तथा दूर के कुटुम्बियों को एक दिन का सूतक मानना चाहिए ।। ९३।। दिवत्तयम सोयं च चउत्थेहि विसुद्ध ए। पादुं हि केवलं सो वि दाण पूयासु पंचमें ॥ १४ ॥ दिनत्रयमशौचं स्यात्सा चतुर्थेऽह्नि शुद्धयति। पत्यौहि केवलं सा च दान पूजासु पंचमे ।। ९४ ।। तीन दिन का रजो धर्म का सूतक सबको रखना चाहिए। चतुर्थ स्नान में पति को भोजन, दान पूजा पंचम में करना चाहिए ॥१४॥ प्राकृतिक अर्थात प्रत्येक महीने में होने वाले रजोधर्म में स्त्रियों को उस रजो धर्म के होने के समय से तीन दिन तक सूतक मानना चाहिए, चौथे दिन वह स्त्री केवल पति के लिए शुद्ध मानी जाती है । तथा दान और पूजा आदि कार्यों में पांचवे दिन शुद्ध मानी जाती है ।। ९४ ॥ चंडालिणी समा आइं बंह दि य बीयए। तइसं रायरूवं च तुरियं दिव सुद्धए ।॥ १५ ॥ चाण्डालिनी समा चाघे ब्रह्मघ्नीव द्वितीयके । तृतीये रजकी रूपा सातुर्येऽह्नि विशुद्धयति ।। १५ ।।.. प्रथम दिन चाण्डालनी जानो, शील का घात करे दूजे दिन। तीजे दिन धोबिनी जानो, मस्तक स्नान से शुद्धि चौथे दिन ।। ९५ ।। इस रजोधर्म में वह स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी के समान मानी जाती है, दूसरे दिन ब्रह्मचर्य को धात करने वाली के समान मानी जाती है, और तीसरे दिन धोबिन के समान मानी जाती है। इस प्रकार तीन दिन तो वह अशुद्ध रहती है। प्रायश्चित विधान - ११३

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