Book Title: Prayaschitt Vidhan
Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya

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Page 111
________________ चौथे दिन मस्तक से स्नान कर लेने पर वह शुद्ध होती है ॥ ९५ ॥ वयां खुल्लिंग अज्जाओं कुज्जेज्ज असणं त । दि तय समत्य मेव आसत्तीए हि आचरे ॥ ९६ ॥ व्रतिका क्षुल्लिका चार्या कुर्यादर्शनं तदा । दिन त्रयं समर्थां चेत् ह्यशक्ता तु चरेत्तदा । ९६ ॥ गर शक्ति हो तो दीक्षित स्त्री, तीनों दिन उपवास करे । बिन शक्ति के दूर, रसोई से बैठ भोजन को किया करें ॥ ९६ ॥ क्षुल्लिका, आर्यिका आदि दीक्षिता स्त्रियों को यदि सामर्थ्य है तो रजस्वला होने पर तीनों दिन तक उपवास करना चाहिए। यदि इतना सामर्थ्य न हो तो अपनी शुद्धि कर भोजनशाला से दूर बैठकर और अपने शरीर को ढककर भोजन करना चाहिए ॥ ९६ ॥ णी रसं भोयणं सुद्ध यागडाण सुदूरओ । मुंजेज्ज खुल्लिंग जाओ आगूढ़ संवियो काइगा ॥ ९७ ॥ नीरसं भोजनं शुद्धं पाकस्थानात्सुदूरतः । भुंजीत क्षुल्लिकाचार्या गूढ़ासंवृत कायिका ॥ ९७ ॥ अपनी शुद्धि कर भोजन शाला से, छाया अपनी दूर रखें । निज शरीर को ढक करके, नीरस भोजन किया करे ॥ ९७ ॥ अपनी शुद्धि कर भोजनशाला से दूर अर्थात् अपनी छाया भोजन पर नहीं ara इतनी दूर बैठकर और अपने शरीर को ढंककर नीरस शुद्ध भोजन करना चाहिए ।। ९७ ।। एगासणं सुमोणेणं परंतदपि णीरसं । सुद्धि किच्चेच्च एगंत धवल वत्थ सुद्धगं ॥ ९८ ॥ एकाशनं सुमौनेन परं तदपि नीरसं । शुद्धिं कृत्वा चैकांते धौत वस्त्रान्विता शुभं ।। ९८ ।। प्रायश्चित विधान ११४ SILIESTICIDhakhan

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