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Irrrसारा सामाचार
जंतूपद्रव संदृष्टौ, मार्जाकादौ प्रदीपतः । पतंगपतने जाते, भोजन त्यज्यते बुधः ।।७५ ॥ जीव के द्वारा उपद्रव कर, बिल्ली दीपक व पतंग के पड़ने पर। बुद्धिमान वहीं होता है, जो भोजन त्याग दे इनके होने पर ।। ७५ ॥
उपद्रवकारी चूहादि प्राणियों के विडाल-बिल्ली आदि के द्वारा पकड़ने, धात करने पर अथवा प्रदीपादि से आकृष्ट पतंगादि के मर जाने पर विद्वानों को भोजन का त्याग कर देना चाहिए ॥ ७५ !
भोयणिज्जासणं सुत्तं, णह केसावलोयणं । कणी तंतु तुसारं च, दिद्धिं भुत्तिय क्जेज्ज ।। ७६ ।।
भोजनीयाशने-शुक्ति, नख केशाऽवलोकने। कणी तंतु तुषामिन्) दृष्टे भुक्ति परित्यजेत् ।। ७६ ।। नख, केश अरु सीप को, आदि वस्तु जो होय । इनके दिखने पर करो, अन्तराय मुनि लोय ।। ७६ ।। भोजक-भोजन करने वाला यदि भोज्य पदार्थ में शुक्ति सीप, नख (नाखून), केश (बाल), अपक्व कण, सूत का धागा (रेशा) तुषादि मिश्रित देखने पर भोजन ल्यागना चाहिए । अर्थात् अंतराय करें ।। ७६ ॥
भुत्तिं कालप्पदीवस्स, णासे चत्तट्ठ मिस्सणे । अण्णस्लिोग णिं दं च, दिदि भुत्तिं च वज्जेज्ज । ७७ ।।
भुक्ति काले प्रदीपस्य, नाशेत्यक्तार्थ मिश्रणे। अन्यस्मिन् लोक निंद्येऽपि, दृष्टे भुक्ति परित्यजेत् ।। ७७ ।।
दिन रात्रि का मिलन हो, फिर भोजन नहीं करना। निंदनीय यह काम है, सर्व बन्धु का यह कहना ॥ ७७॥
भोजन करते समय दीपक बुझ जाय अथवा अन्य भी लोकनिंद्य पदार्थ पके भोजन में दृष्टिंगत हो तो उसी समय भोजन का त्याग कर देना चाहिए।। ७७ ।।
प्रायश्चित्त विधान - १०६