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चार सौ बार जाप करें। पुनः चारों संध्याओं में मणिमाला से एक-एक हजार जाप करें तथा उतने ही पुध्यों से करि अर्थात् कड़ी जाप करें। अर्थात् चार हजार पुष्पों से महामंत्र श्री णमोकार का जाप करें ॥ २४ ॥
किच्चा एगासणं आई, सकय भुत्ति चउद्वं च । वितणेउ उक्कियं सग्गं सोलहारह गुणत्थुयं ।। २५ ।।
कृत्वेकानशनं चादौ, सकृद्-भुक्ति-चतुष्टयं । वितनोत् उत्कृत सान, षोडशार्हद्-गुण-स्मृतिः ॥ २५॥
दो बार एकाशन कर, चार भुक्ति का त्याग करें। अरहंत के सोलह गुणों का, विस्तार से स्मृति करें ।। २५ ।।
निन्यानवें अर्थात् एक कम सौ प्रथम जाप करें चार दिन एक भुक्त भोजन करें। पुनः सोलहवें शांतिनाथ तीर्थकर प्रभु का गुण स्मरण करें। सोलह कायोत्सर्ग पूर्वक सोलह स्तोत्र पाठ करना चाहिए ॥ २५ ॥
सत्त बग्ग घडखेवे सुत्ताण विंसइभया णवमझ घडा कोणे चत्तारो सोलह भजे ॥ २६ ॥
सप्त वर्ग घट न्यासे, सूत्राणां विंशतिर्मता। नवमध्य घटाः कोणे, चत्वारः षोडश-स्मृतः ॥ २६ ॥
सप्त वर्ग से सूत्र से युक्त, बीस घड़े स्थापित करें। मध्य में नव घट, चार कोने में छब्बीस के क्रम से स्थापित करें ॥ २६ ॥
एक सप्ताह का क्रम उल्लंघन होने पर सप्त बार वर्गित कलशे सूत्र से वेष्टित कर क्रम से स्थापित करें। चारों दिशाओं में बीस-बीस कुंभ संयोजित करें। चारों कोणों विदिशाओं में छब्बीस छब्बीस सुसज्जित घटों की स्थापना करें! मध्य में नौ घटों की स्थापना करना चाहिए ॥ २६ ॥
एम पक्खे अमुट्ठाणं हाणे णिहाण जन्वेड। एगासिदी पडो सव्वं गंध-दव्यम्बु पाए ॥ २७ ॥
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पायश्चित ferr . ८५५