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एकपक्षेप्यनुष्ठानं, हानो संस्नाप्य च जपेत् ।
एकाशीति घटो सर्व, गंध द्रव्यांबु पूरयेत् ।। २७॥ हानि रहित होकर, अच्छी तरह से एक पक्ष में जाप अनुष्ठान करें।
८१ धड़ों को सभी सुगन्धित द्रव्यों से भरे ॥ २७ ।। एक पक्ष पंद्रह दिन पर्यंत यदि दैनिक षट् कर्मों का अनुष्ठान नहीं कर सके तो बाल संबंधी दोष की निवृत्ति के लिए इस प्रायश्चित्त विधि को करना चाहिए । इक्यासी घंटो के सम्यक् प्रकार सूत्र से वेष्टित करें , उनमें सर्व गंध अर्थात् सर्वोषधि मिश्रित जल भरें और पंच णमोकार मंत्र जप करते हुए श्री जिनाभिषेक करें ।। २७ ॥ तथा जप करें -
पंच मंत्त सहस्साणं पण्णासयजुयं भजे । पण्णक्खर पदं मंत्तं पंचण्हं परमेट्ठिणं ।। २८॥
पंचमंत्र सहस्राणां, पंचशत्यायुतं जपेत् । पंचाक्षर पट पत्रं. पंजा महीला १०॥
पांच हजार या, पान सौ युक्त जाप करें। णमो सिद्धाणं या पंच परमेष्ठी का जाप करें ॥२८॥ पांच परमेष्ठी वाचक महामंत्र का पांच हजार पांच सौ बार जाप करना चाहिए ॥ २८ ॥ तथा
खो दो वासं सके मुत्ती कुज्जे छक्कं परं तप । परमेट्टि गुणं थोवं काउसग्गं च विसई ॥ २९॥
झुपवासं सकृद्भुक्ति, कुर्यात् षट्कं परं तपः।
परमेष्ठी गुण स्मृत्या, कायोत्सर्गश्च विंशतिः॥ २९ ॥ - दो उपवास षट् भुक्ति, यह परम तप करते हैं, बीस बार कायोत्सर्ग कर, परमेष्ठी के गुणों का स्मरण करते हैं ॥ २९ ॥
दो उपवास और छह एकाशन रूप उत्तम तप करें। तथा पंच परमेष्ठी का गुण स्मरण करते हुए बीस कायोत्सर्ग करें।। २९ ।।
प्रायश्चित्त विधान - ८६