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मण्डल में स्थापित कर, अरहंत पूजा अर्चना क्रम से करें ।
१०८ जाप जप, आठ हजार जाप करें ॥ ३२ ॥
मंडलमांडकर क्रम से अभिषेक के अनंतर जिन पूजा अर्चना करें तथा आठ हजार आठ सौ महामंत्र का एकाग्रचित्त से जाप करें ॥ ३२ ॥
उपवासत्रायं किच्चा अबमेदार वे तवो ।
विधि संका सच्चागे एक सित्था तवोचरे ॥ ३३ ॥
उपवास त्रयं कृत्वा, वमौदर्य-द्वयं ततो । वृत्ति संख्या रसत्यागे, चैक सिक्था तपश्चरेत् ॥ ३३ ॥ तीन उपवास कर, दो अवमौदर्य करता है। शक्ति अनुसार रस त्याग कर, तपस्या करता है ॥ ३३ ॥ साथ में तीन उपवास और दो अवमौदर्य अर्थात् आधा पेट भर भोजन करें
| भूख से कम आहार करना अवमौदर्य तप कहलाता है । तत्पश्चात् वृत्तिसंख्यान तथा रस परित्याग तपाचरण करना चाहिए। अवमौदर्य में एक कण भात भोजन तक कहा है || ३३ ॥
निम सकय सच जण्णेणय तवोत्थु सो । बं चरिमणुडेयं पायच्छित दिने बुहे ॥ ३४ ॥ त्रिंशत्मितां सकृत्सर्गान, प्रयत्नेन ततो तु सः । ब्रह्मचर्य मनुष्ठेयं, प्रायश्चित्त दिने बुधाः ॥ ३४ ॥
तीस कायोत्सर्ग कर एक भुक्ति को बढ़ावें । ब्रह्मचर्य का पालन कर प्रायश्चित विधान का अनुष्ठान करावें ॥ ३४ ॥
प्रयत्नपूर्वक तीस पर्यंत कायोत्सर्ग अथवा एक भुक्ति को बढ़ावें । इस प्रकार असि धारा व्रत- ब्रह्मचर्य पूर्वक विद्वान प्रायश्चित विधान का अनुष्ठान करें ॥ ३४ ॥ सुतं सोलह भासियं णवपदे अङाहिसंक्खे कए । तुम्हं पादसु ओ सतुरिमो परथ च सुण्यं बुही ॥
प्रायश्चित विधान - ६६
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