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फिर क्रम से सोलह और नवे पद में आठ की गणना करनी चाहिए । फिर चौथे पद में विद्वानों को स्थापना करना चाहिए ।। घट स्थापन करने पर बारह पर भी मन देना चाहिए। atra में एक घट भी रखना चाहिए पूर्वाचार्यों के कहने से दोषों की गिनती करिये ॥ ३६ ॥
इसी प्रकार क्रमश: सोलहवें और नवें पद में आठ की संख्या होनी चाहिए। इसके ऊपर तथा चौथे पद में विद्वानों को स्थापना करनी चाहिए। कलश की स्थापना करने पर दो दश का भी ध्यान देना चाहिए। मध्य में एक घट की स्थापना करनी चाहिए। फिर पूर्वाचार्यों के अनुसार दो सौ की स्थापना करनी चाहिए ।।
३६ ॥
कुंभ णिक्खेव सत्त आइत्तिसु तिहि मिया वार सं च वि । उत्तिम मज्झे एगं ख जुम्मे अहि हय कलस डाव णत्थं सुमुतं ॥ ३७ ॥ वर्जित्यन्यत्यष्ट पदेषु, सप्तकलशान्वृत्तेथमध्ये । सुधारेषां साष्ट शत् प्रमाणं, घट विन्यासे क्रमोऽयमतः ॥ ३७ ॥ सात कलश वृत्त के मध्य में रखना चाहिए।
सतक अष्ट घट का विन्यास शास्त्र सम्मत मानना चाहिए || ३७ ॥
सात कलश वृत्त के मध्य में रखने चाहिए किन्तु इस बात का ध्यान रहे कि इसमें आठ पद वर्जित हैं। एक सौ आठ प्रमाण पूर्वक इन घटों का विन्यास भी शास्त्र सम्मत माना गया है ॥ ३७ ॥
किच्चट्ठे जुतं सुत्तं जलणिहि जुग दग संक्खा भागा। कुंमाणि पंच एग दुवे णव यंसे चक्के तए य ।।
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णिक्खे वे अंस स जुम्मतिहिप मा गणियं अहं । दससे मज्झेगेग घडाणं खिवित्तिहिमय जेणलक्खप्पमाणं ॥ ३८ ॥ सूत्रोवद्वयवाद्धि भाषित पदेष्वक्षष्व संख्यैः कृते । ष्वत्पाद्योपरितः स विरहित हरिभावास्य युग्मे षु च ॥
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प्रायश्चित विधान ९०
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