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LTTE प्रतिमा -याता, नाणी नाल्नरेत ।। ४९!!
रत्न लोह की शिला पर, चित्र लेप जब होय ।
प्रतिमा अरहंत की, जैसी कहियो लोय ॥४९॥ खण्डित होने वाली प्रतिमा रत्न, लौह, शिला (पाषाण) चित्र लेपादि की जैसी है, अन्य जिनबिंब शिल्पी-जो प्रतिमा निर्माण का झाता है, उसी प्रमाण की निर्माण करें। अर्थात् करावे ऐसा आगम का कथन है ॥ ४९ ।।
पुचवं पूयणं जाव पडिमा हि हवेस्सए। दुन्झरं - व्वय संजुत्ता, तावक्कारइ सं लहू ॥५०॥
पूर्ववत् पूजनं यावत्, प्रतिमा च भविष्यति। दुर्द्धर व्रत संयुक्ताः, तावत्कारयेत् लघु ॥ ५० ॥
पहले पूजन अरहंत की, करते आये होय। कठोर व्रत को सरल कर, पूजन करियों सोय ॥५०॥
जब तक तदनुसार नवीन प्रतिमा तैयार नहीं होगी, तब तक कठिन व्रत लघुमास तप करें। नियम लेकर भक्ति से पूर्व के समान ही पूजाभक्ति करें। तथा शीघ्र बिम्ब तैयार कराने का प्रयत्न करें। वर्षा तीन, शीतकाल के दो और ग्रीष्म का एक उपवास करना लघु मास तप है ।। ५० ।।
सिला रयण बिंबं च, बया हवइ सुक्कयं । तमेव पादं सुसोम्म, दिढ़ सुंदर संजुयं ।। ५१॥
शिलारत्नमयं बिंबं, यदा भवेत् सुकृतं । तदैवायादयत सौम्यं, दृढ़ौ सौंदर्य संयुतं ।। ५१ ॥
रत्न जड़ित मूर्ति बने, श्री जिनेन्द्र भगवान । फिर उनके सौन्दर्य का, खूब करो गुणगान ।। ५१ ॥ जिस समय शिला या रत्नमयी तदनुसार जिनबिंब बन जाय तो उसी समय
प्रायश्चित्त विधान - ९६