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IEEEEEILIT.. एकासीदी षडं खेवे चउविसई सुत्तगे। दिसिमझे चउकोणे णव णवो कलसं ठवे ॥३०॥
एकाशीति घट न्या. चनुर्विंशति सूत्रकैः। दिशिमध्ये चतुष्कोणे, नव नवो कलशाः स्मृताः ॥ ३० ॥
२४ सूत्रों के द्वारा ८१ घटों की स्थापित करना चाहिए। दिशा के मध्य चारों कोनों में नव नये कलशों का स्मरण करना
चाहिए ॥ ३०॥ चतुर्विंशति सूत्र में वर्णित विधान के अनुसार ससूत्रसज्जित ८१ घट स्थापित करें अर्थात् चारों दिशाओं, चारों विदिशाओं तथा मध्य में नौ-नौ घट स्थापित करें ॥ ३० ॥ एवं
एग मासे अणुट्ठाणं हाणो निहाणंए जिणं । अङ्गुत्तरं सयं कुभे सव्वोसहि जुयं बूहि ॥ ३१॥
एकमासेप्यनुष्ठानं, हानो संस्नापयेन्जिनं। अष्टोत्तर शत कुंभैः, सर्वोषधि युतांवुभिः ।। ३१ ॥ एक मास का अनुष्ठान कर, अरहंत जिन को स्थापित करें।
१०८ घड़ों को निश्चय से सर्वोषधि से भरे ।। ३१॥ एक महीने पर्यंत स्व आवश्यक कर्म की क्षति हो आने पर इस प्रकार प्रायश्चित्त करना चाहिए । सर्वोषधि विमिश्रित जल से परिपूर्ण एक सौ आठ कलशों को स्थापित कर यथोक्त विधि से श्री जिन भगवान काभक्ति युत अभिषेक करना चाहिए ॥ ३१ ॥ तथा
विज्जा अरह पूय अच्चणं मंडलक्कमा। अहासयुत्तरं कुज्जै जव (भबं) अट्ठसहस्सगं ॥ ३२॥
विद्ध्यादर्हतां पूजा-मर्चना मंडल क्रमात् ।
अष्टाशत्युत्तर कुर्याद्; जपमष्ट सहरकं ॥ ३२॥ साम्पसimar
प्रायश्चित विधान - ८७
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