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HTTIEEELITERARIETIEEEEE होता है। सो ही लिखा है -
चांडालादिकसंसर्ग कुर्वन्ति वनितादिकाः। पंचाशत्प्रोषधाश्चैक भक्ताः पंच शतानि च।। सुपात्रदानं पंचाशत्पुष्पचन्दनपूजनम् ।
संघ पूजा च जाप्यं च व्रतं दानं जिनालये ॥ यदि स्त्री आदि का माली आदि से संसर्ग हो जाय तो उसे पाँच उपवास दश एकाशन, अपनी जाति के बीस पुरुषों को भोजन देना चाहिए। इतना प्रायश्चित्त कर लेने पर वह शुद्ध और पंक्ति योग्य होता है। सो ही लिखा है -
मालिकादिकसंसर्ग कुर्वन्ति योषितादयः।
प्रोजवाद का कलानिविदाति:।। इसी प्रकार वृद्धि सूतक में (किसी बालक के जन्म होने से जो सूतक लगता है उसमें) अथवा मृत्यु सूतक में (किसी के मरने पर जो सूतक लगता है उसमें) पाँच उपवास, ग्यारह एकासन, पात्रदान और केशर, चन्दन आदि द्रव्यों से भगवान की पूजन करनी चाहिए। इतमा प्रायश्चित्त कर लेने पर उसका वह सूतक दूर होता है तथा वह शुद्ध होकर पंक्ति योग्य होता है। सो ही लिखा है -
सूतके जन्म मृत्योश्च प्रोषधाः पंचशक्तितः।
एक भुक्ता दशैकाद्याः पात्रदानं च चंदनम् ।। जिस पुरुष ने किसी वस्तु का त्याग कर रखा है वह यदि बिना जाने खाने में आ जाय तो एक उपवास, दो एकाशन और अपनी शक्ति के अनुसार पुष्पाक्षतादिक से भगवान की पूजा करनी चाहिए। तब वह त्याग भंग का प्रायश्चित्त होता है।
इसी प्रकार बिना जाने यदि मुख में हड्डी का टुकड़ा आ जाय तो तीन उपवास, चार एकाशन और अपनी शक्ति के अनुसार केशर, चंदन, अक्षत आदि की पूजा की सामग्री मन्दिर में देनी चाहिए तब उसकी शुद्धि होती है।
प्रायश्चित विधान - १५