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इसलिए प्रायश्चित्त ग्रन्थों में विकृतियाँ आई हैं परन्तु दिगम्बर जैन आचार्यों ने उन विकृतियों को स्वीकार नहीं किया और मोक्ष मार्ग की आचार्य संहिता के लिए वीतराग परमात्मा की आज्ञा को स्वीकार किया और करवाया एवं करने बालों की अनुमोदना की। उन्हीं प्राचीन आचार्यों की व्यवस्थानुसार उसी प्रकार ओर भी अनेक प्रकार से प्रायश्चित्त की विधान की व्यवस्था है जो कि दिगम्बर जैन आचार्य संहिता के तहत आवश्यक है F
इसी आचार्य संहिता का पालन करने और कराने हेतु और इस बीसवीं शताब्दी में देश में जब धर्म का लोप हो रहा था धर्म गुरु के रूप में दिगम्बर संतों का अभाव हो गया था। देश में अत्याचार अनाचार बढ़ने लगा था। जैन धर्म का लोप होता जा रहा था ऐसे समय में पूज्य शिव गौड़ा ने प्रथम दिगम्बर दीक्षा लेकर इस देश में पुनः धर्म का झंडा फहराया।
शिव गौड़ा का जन्म ईस्वी सन् १८६६ भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी के दिन पिता सिद्ध गौड़ा माता अक्काबाई के यहाँ हुआ। श्री शिव गौड़ा को ३७ वर्ष की अवस्था में वैराग्य हुआ था। उस समय इनका बालक तवन गौंडा अनुमानतः ५ या ६ वर्ष का होगा। उस समय ये श्री सम्मेद शिखर की यात्रा को जाने लगे। तब बालक ने पैर पकड़ लिया और रोकर कहा पिताजी तुम कहाँ जाते हो ? तब बालक को कुछ आश्वासन देकर, कुछ देकर मोह छोड़कर सम्मेद शिखर की यात्रा की तथा राजगृही, पावापुरी, सेठ सुदर्शन पवित्र स्थान गुलजार बाग पटना आदि की यात्रा कर आरा में एक मास तक ठहरे वहाँ जिनवाणी भक्त शिरोमणि दानवीर रईस देवकुमारजी ने वैराग्य में विशेषता उत्पन्न करने के लिए ३२ श्री जिन मंदिरों के भक्ति पूर्वक दर्शन कराये नांदिनी में तीन उपवास करने के पश्चात् श्री भट्टारक स्वामी श्री जिनप्पा से स्वाति नक्षत्र में ४० वर्ष में क्षुल्लक दीक्षा धारण की। क्षुल्लक दीक्षा में ३ मास तक रहे। अनन्तर आर्य दीक्षा ऐलक दीक्षा दही गाँव में श्री भगवज्जिनेन्द्र की साक्षी पूर्वक धारण की अनुमानतः ८ वर्ष तक आर्य दीक्षा में रहकर ३ वर्षों में ३ उपवास अनन्तर भिक्षा आदि का उत्तम अभ्यास कर वैराग्य हड़कर मार्ग शीर्ष शुक्ला मूल नक्षत्र मंगलवार १० बजे १८३५ शके
प्रा.
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प्रायश्चित विधान-२२