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rr Aurrrसासम्मम्मर यत् श्रमणानामुक्तं प्रायश्चित्तं तथा यत् आचारणं । तेषां चैव प्रोक्तं तत् श्रमणीयामवि ज्ञातव्यं ।। २८८ ।।
नवरि पर्यायच्छेदो मूलस्थानं तथैव परिहारः। दिन प्रतियापि च तासां त्रिकालयोगश्चनैवास्ति॥२९० ॥ छे. पि. । ___ जो श्रमणों को प्रायश्चित्त कहा गया है उसी प्रकार वही आचरण श्रमणियों को भी जानना चाहिए। उसमें सिर्फ विशेष यह है कि पर्याय छेद मूलस्थान उसी प्रकार परिहार प्रतिमायोग त्रिकालयोग उनको नहीं है।
दोहं तिण्हं छह मुवरि मुक्कस्समझि मिदिराणं । देस जदीणं छेदो विरदाणं अद्धद्ध परिमाणं ।। ३०३ ।। विरदाणमुत्तमलहरणस्स दुभागो तहजओ भागो । भागो चउत्थओ वि यतेस्सिं छेदो त्तिवेतिपरे ॥३०४॥ संबद पायच्छित्तस्सद्धादिक मेण देस विरदाणं । प्रायच्छित्तं होदित्ति जदि विसामण्णदो वृत्तं ॥ ३०५ ॥ द्वयोः त्रयाणं सपणं उपरि उत्कृष्टयोः मध्यमानमितरेषां । देशयतीना छेदः विरतानां अर्धापरिमाणः ॥ ३०३ ।। विरताना मुक्तमलहरणस्य द्दि भागः तृतीयो भागः । भागश्च तुर्योऽपि च तेषां छेदः इति वृतति परे ।। ३०४।। संयत प्रायश्चित्तस्य अर्थादिक्रमेणदेश विरतानां । प्रायश्चित्त भवतिसि यद्यपि सामान्यतः उवत्तं ॥ ३०५ ।।
- छे. पि.। दो भाग उत्कृष्ट, तीन भाग मध्यम और छटवां भाग जघन्य देशयतियों को छेद होता है। व्रतियों को आधा-आधा के प्रमाण प्रायश्चित्त कहा गया है। परन्तु कोई व्रतियों को प्रायश्चित्त दो भाग तीसरा भाग और चतुर्थ भाग उनको छेद प्रायश्चित्त होता है। संयत के प्रायश्चित्त का आधा-आधा के क्रम से देश व्रतियों
प्रायश्चित्त विधान -६०