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प्रकाशकीय......
आचार्य आदिसागर अंकलीकर विद्यालय, २५ क्ववान रोड़ इटावा (उ. प्र.) ज्ञानवृद्धि का केन्द्र रहा है । अंकलीकर वाणी पत्रिका यहीं से प्रकाशित होती है। इसके पूर्व में निलोकसाब मंडन प्रकाशित हुआ तथा यह प्रायश्चित्त विधान थ पाठकों के हाथों में है।
यह आचार्य आदिसागर जी अंकलीकर प्रणीत अपराध शोधन का श्रेष्ठ ब्रन्थ है। इसका संस्कृत काव्यानुवाद पट्टाधीत आचार्य महावीरकीर्ति जी ने किया है और इसका हिन्दी भाषानुवाद गणिती आर्यिका 'विजयमतिजी ने किया है।
इस ग्रन्धराज के प्रकाशन का कार्य भार आचार्य आशिलाभर अंकलीकर विद्यालय को प्राप्त हुआ है। प्रधुल पावकाण मूल आचार्य के हदयंगत मंतव्यों को एवं भावों को जानकर उद्याटित करने में सहायता मिलेगी। इसके प्रकाशन का उद्देश्य है कि जिन शासन जयवंत होता हुआ वृद्धिंगत हो । शुभकामनाओं सहित--
विष्णु कुमार चौधरी
५१, शाहबान, इटावा (उ.प्र.)
प्रायश्चित्त विधान-७१