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... श्री वीतरागाय नमः •••
श्रीमदाचार्यादिसागरांकलीकर विरचित प्रायश्चित विधान
हिन्दी टीकाकार का मंगलाचरण
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सिद्ध बुद्ध अविरुद्ध निरंजन चिदानंदमय राजत है, शिवपुरवासी भावल अनुषंग सुध्द्धति अनुभवते हैं। जिनके सुमरण वन्दन से भव-भव के मानक नशते हैं, सम्यक्ज्ञान जगे सम उर में भक्तिभाव युत वंदन हैं ॥ १ ॥ दोष अठारह नाश किये जिन समवशरण में राज रहें, घात घातिया चारों जिनने गुण अनंत च प्राप्त किए।
अष्ट सहस नामों से जिनकी स्तुति आ अमरेश करें, उन अरिहंत जिनेश्वर की मैं, भक्ति नमन कर निजकार्य करूं ॥ २ ॥ प्रथमाचार्य श्री आदिसागर जी अंकलीकर कहलाते हैं।
लुप्त हुई यति परंपरा को कृपा से उनकी पाये हैं ।। धन्य गुरु सदुपदेशामृत पान कराकर सन्मारण दर्शाये हैं। नमस्कार करती चरणों में विधि टीका की बतला देना || ३ ||
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महावीर कीर्ति गुरु नमन कर विमल सिंधु को ध्याय ।
तृतीय पट्टाधीश हैं श्री सन्मति सिंधु महान || इनके चरण प्रसाद से पाऊँ निर्मल शुभ ज्ञान । प्रायश्चित्त शुभ ग्रंथ की टीका हो सुखकार ॥ ४ ॥
प्रायश्चित विधान ७३
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