Book Title: Prayaschitt Vidhan
Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ inwww जाये उसको विवेक कहते हैं। अलुभी चिंतन आर्तध्यानः दः स्वप्न दुर्ध्यान आदि से उत्पन्न हुए दोषों को शुद्ध करने के लिए अथवा मार्ग में चलना नहीं पार होना तथा और भी ऐसे ही ऐसे कार्यों से उत्पन्न हुए अतिचारों को शुद्ध करने के लिए उत्तम ध्यान को धारण करो सुटिपूर्वक शरीट के सम्मान कार है उसको श्रेष्ठ कायोत्सर्ग कहते हैं। व्रतों के अतिचार दूर करने के लिए उपवास करना आचरण करना निर्विकृति (रसत्याग) करना अथवा एकाशन करना आदि यदि किसी भय से उन्माद से प्रमाद से अज्ञानता से या असमर्थता से अथवा विस्मरण हो जाने से वा और भी ऐसे ही ऐसे कारणों से व्रतों में अतिचार लगे हैं तो उनको दूर करने के लिए समर्थ अथवा असमर्थ मुनि को अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार ऊपर लिखे छहों प्रकार के प्रायश्चित्त देने चाहिए। यदि कोई मुनि चिरकाल का दीक्षित हो या शूरवीर हो या अभिमानी हो और वह अपने व्रतों में दोष लगावे तो उसको एक महीना, दो महीना, एक वर्ष, दो वर्ष आदि की दीक्षा का छेद कर देना चाहिए। वह छेद नामका प्रायश्चित्त कहलाता है । जो महा दोष उत्पन्न करने वाले पार्श्वस्थ आदि पांच प्रकार के मुनि है अथवा जिन्होंने अपने ब्रह्मचर्य का घात कर दिया है। ऐसे मुनियों की सब दीक्षा का छेद कर उनको फिर से दीक्षा देना मूल नाम का प्रायश्चित्त है। परिहार प्रायश्चित्त के दो भेद हैं एक अनुपस्थान और दूसरा पांरभिक । यही परिहार नाम का प्रायश्चित्त पहले के तीन संहननों को धारण करने वालों को ही दिया जाता है। भगवान गणधर देव ने अपने जिनामम में अनुप्रस्थान के भी दो भेद कहे हैं एक तो अपने ही संध में अपने ही आचार्य से परिहार नामका प्रायश्चित लेना और दूसरा दूसरे गण में जाकर प्रायश्चित्त लेना । जो मुनि चोरी करके अन्य मुनि के साथ रहने वाले किसी मुनि को, अच्छी आर्यिकाओं को, विद्यार्थी को, बालक को, गृहस्थ को व परस्त्री को अथवा द्रव्य पाखंडियों को अन्य अचेतन पदार्थों को अपहरण करके अथवा किसी मुनि को मार डाले अथवा ऐसा ही कोई अन्य विरुद्धाचरण करे तथा वह मुनि नौ वा दश पूर्व का धारी हो, उत्कृष्ट हो, चिरकाल का दीक्षित हो, शूर हो, समस्त परिसहों को जीतने वाला हो और दृढ़ प्रायश्चित्त विधान - ३६

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140