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the CrCra. Cửa सो ही लिखा है
आयाते मुखेस्थिखण्डे चोपवासास्त्रयो मताः।
एक भुक्ताश्च चत्वारो गंधाक्षताः स्वशक्तितः ।। यदि अपने हाथ से हड्डी का स्पर्श हो जाय अथवा अपने शरीर से हड्डी का स्पर्श हो जाय तो स्नान कर दो सौ बार णमोकार मंत्र का जप करना चाहिए। यह उसका प्रायश्चित्त है । यथा
स्पर्शितेस्थिकरे स्वांगे स्नात्वा जाप्यशतद्वयम् ।
अस्थि यथा तथा चर्म केश श्लेष्ममलादिकम् ।। जिस प्रकार हड्डी के स्पर्श का प्रायश्चित्त बतलाया है वही प्रायश्चित्त गीले चमड़े के स्पर्श करने का, केश-श्लेष्म (कफ-खकार) नाक का मल आदि का हाथ से व शरीर से स्पर्श हो जाने पर सेना चाहिए।
अपनी स्त्री के गर्भपात से उत्पन्न होने वाले पाप के होने पर बारह उपवास, पचास एकाशन और अपनी शायरी के अनुसार पुष्प, अक्षतादिक जिनालय में देना चाहिए तब शुद्धि होती है । सो ही लिखा है
गर्भस्य पातने पापे प्रोषधा द्वादशाः स्मृताः ।
एक भक्ताश्च पंचा शत्पुष्पाक्षतादिशक्तितः॥ यदि अज्ञान से व प्रमादसे दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय आदि विकलत्रय जीवों की हिंसा हो जाय तो दो इन्द्रिय जीव की हिंसा होने पर चार उपवास और णमोकार मंत्र की चार मालाओं का जप करना चाहिए । तब उसकी शुद्धि होती है। सो ही लिखा है
अज्ञानाद्वा प्रमादाद्वा विकलत्रयघातके।
प्रोषधा द्वित्रिचत्वारो जपमाला तथैव च।। यदि घास, भूसा खाने वाले पंचेन्द्रिय पशु का धात हो जाय तो अट्ठाईस उपवास, पात्रदान, गौदान और अपनी शक्ति के अनुसार पुष्प, अक्षत आदि पूजा के द्रव्य जिनालय में दान देना चाहिए तब उसकी शुद्धि होती है तथा तभी
प्रायश्चित्त विधान - १६