________________
१८
पउमचरिउ
पाँचवीं सन्धि
७६-९४
इक्ष्वाकुकुलका उल्लेख, अजित जिनका संक्षिप्त वर्णन, सगर चक्रवर्तीका वर्णन, उसका सहस्राक्षको कन्यासे विवाह, सहस्राक्ष की में वाहनपर चढ़ाई, उसके पुत्र तोयदवाइनका पलायन, उसका अजितनाथके समवशरणमें जाना और दीक्षा लेना, महाराक्षसका लंकानरेश बनना, सगरके पुत्रोंकी कैलासयात्रा और हाई खोदना, धरणेन्द्रके प्रकोपमें उसका भस्म होना, सगरकी बिरक्ति, सगर द्वारा दीक्षाग्रहण, महाराक्षसके पुत्र देवराक्षसका जलविहार, श्रमणसंघका आना और उसका धन्दना के लिए जाना, महाराक्षसकी राक्षससेना, देवराक्षसका गद्दी पर बैठना ।
छठी सन्धि
९४-११४
"
उत्तराधिकारियोंकी लम्बी सूची अन्तिम राजा कीर्ति बलका होगा, उसके साले श्रीकण्ठका अपना सेनाका आक्रमण, कमलाका बीचबचाव और सन्धि, श्रीकण्ठका वानरद्वीपमँ रहने का निश्चय, वानरद्वीपमें प्रवेश, बानरद्वीपका वर्णन, वयकंण्ठकी उत्पत्ति, श्रीकण्ठको विरक्ति और जिनदीक्षा, नवमी पीढ़ीमें राजा अमरप्रभका होना, उसका वानरोंपर प्रकोप, मन्त्रियोंके समझानेपर कुलध्वजामें वानरोंका अंकन सडिकेश द्वारा चानरका वध, वानरका उदधिकुमार देव बनना और बदला लेना, सबका जिनमुनिके पास जाना, धर्म-अधर्म वर्णन ओर पूर्व-भव कथन, तडित्केशकी जिनदीक्षा |
सातबी सन्धि
११४-१२८
कुमार किष्किन्ध और अन्धकका स्वयंवरमें जाना, आदित्यनगरको श्रीमालाका स्वयंवर में आना, किष्किन्धका वरण,