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विषयानुक्रमणिका
सत्तावनवाँ पर्व
लंका निवासिनी सेनाकी तैयारी तथा लंकासे बाहर निकलनेका वर्णन |
अट्ठावन पर्व
नल और नीलके द्वारा हस्त और प्रहस्तका मारा जाना ।
उनसठवाँ पर्व
श्रेणिक के पूछने पर गौतम स्वामी द्वारा हस्त-प्रहस्त और नल-नीलके पूर्वभवोंका वर्णन ।
साठव
अनेक राक्षसोंका मारा जाना तथा राम लक्ष्मणको दिव्यास्त्र तथा सिंहवाहिनी और गरुडवाहिनी विद्या की प्राप्तिका वर्णन ।
तिरसठवाँ पर्व
शक्ति निहत लक्ष्मणको देख राम विलाप करते हैं ।
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इसवाँ पर्व
सुग्रीव और भामण्डलका नागपाशसे बाँधा जाना तथा राम-लक्ष्मण के प्रभावसे उनका बन्धनमुक्त होना ।
३६१-३६६
चौसठवा पर्व
३६७-३७०
बासठवाँ पर्व
वानर और राक्षसवंशी राजाओंका युद्ध, विभीषण और रावणका संवाद, योद्धाओं की रणोन्मादिनी चेष्टाएँ और रावण के द्वारा शक्तिका चलाया जाना । शक्ति के लगने से लक्ष्मणका मूर्छित हो पृथिवी पर गिर पड़ना ।
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१३
३७१-३७३
३७४-३८४
३८५-३८७
इन्द्रजित् मेघवाहन तथा कुम्भकर्णके मरनेकी श्राशंकासे रावण दुखी होता है । लक्ष्मण के घायल होनेका समाचार सुन सीता भी बहुत दुखी हुई । एक अपरिचित मनुष्य द्वारा लक्ष्मणकी शक्ति निकालने का उपाय बताया जाता है, वह अपना परिचय देता है । विशल्या के पूर्वभवों तथा उसके वर्तमान प्रभावका वर्णन कर वह रामको सान्त्वना देता है ।
पैंसठवाँ पर्व
उस परिचित प्रतिचन्द्र विद्याधर के वचनोंसे हर्षित हो रामने हनूमान् भामण्डल तथा अंगदको तत्काल अयोध्या भेजा । अयोध्या में क्षोभ फैल जाता है । अनन्तर द्रीयमेघके पास भरतकी मा स्वयं गई और विशल्याको लंका भेजनेको व्यवस्था की । विशल्या के लंका पहुँचते ही लक्ष्मणके वक्षःस्थलसे शक्ति निकल कर दूर हो गई और रामकी सेना में हर्ष छा गया । विशल्याका लक्ष्मण के साथ विवाह हुआ ।
३८८-३६५
३६६-३६८
३६६-४०७
४०८-४१४
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