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विषयानुक्रमणिका
पैंतालीसवा पर्व लक्ष्मण खरदूषणको निष्प्राणकर जब रामके पास आते हैं तब उन्हें सीतारहित देख बहुत दुःखी
होते हैं । लक्ष्मण अपने उपकारी विराधित विद्याधरका रामको परिचय देते हैं। उसी समय विराधित सेना सहित रामके समीप आ पहुँचता है। रामकी बहुत स्तुति करता है । लक्ष्मण उससे सीता हरणकी बात कहते हैं। विराधितने अपने मन्त्रियोंको सीताका पता लगानेका आदेश दिया । अर्कजटीका पुत्र रत्नजटी सीताका रोदन सुन रावणके पीछे दौड़ा परन्तु रावणने उसकी आकाशगामिनी विद्या छीनकर उसे नीचे गिरा दिया। वह समुद्रके मध्य कम्बु नामक द्वीपमें पड़ा । विद्याधरोंको सीताका पता नहीं लगा। अनन्तर विराधितके कइनेसे राम अलंकार पुर (पाताल लंका) गये । वहाँ सीताकी विरहानलमें झुलसते रहे । २४४-२५६
छियालीसवाँ पर्व रावण सोताको लेकर लंकामें पहुँचा । वहाँ पश्चिमोत्तर दिशामें स्थित देवारण्य नामक उद्यानमें
सीताको ठहराकर उससे प्रेम याचना करने लगा । शीलवती सीताने उसकी समस्त प्रार्थनाएँ ठुकरा दी। रावणने माया द्वारा सीताको भयभीत करनेका प्रयत्न किया परं वह कर्तव्य पथसे
रञ्चमात्र भी विचलित नहीं हुई। रावणको विप्रलम्भजन्य दुर्दशा देख मन्दोदरीने उसे बहुत समझाया पर सब व्यर्थ हुआ। रावण
की दुर्दशासे दुखी हो मन्दोदरी सीताको समझानेके लिए गई पर सीताने ऐसी फटकार दी कि मन्दोदरीको उत्तर नहीं सूझ पड़ा। प्रातःकाल होने पर रावण पुनः सीताके पास गया पर सीताको अनुकूल नहीं कर सका। मन्त्रियों-द्वारा प्रकृत बातपर गम्भीर विचार विमर्श हुश्रा और लंकाकी रक्षाके उपाय किये गये।
२५२-२६८ सैंतालीसवा पर्व विट सुग्रीवके द्वारा उपद्रुत होनेके कारण किष्किन्धापुरीका स्वामी सुग्रीव दुःखी होकर इधर-उधर
भ्रमण करता फिरता था। उसी समय वह विराधितकी पाताललंकामें आया। विराधितने उसका सन्मान किया। वहाँ रामके साथ उसका परिचय हुआ। मन्त्रियोंने रामसे सुग्रीवकी दुःखद दशाका वर्णन किया जिसे सुनकर रामने उसकी सहायता करना स्वीकृत किया। रामने जाकर कृत्रिम सुग्रीव साहसगति विद्याधरको निष्प्राण किया । सुग्रीवकी तेरह कन्याअोंने रामको वरा''।
२६६-२८० अड़तालीसवाँ पर्व राम सीताके विरहसे संतप्त हैं । सीताका पता चलाने में सुग्रीवको विलम्ब युक्त देख लक्ष्मण उसके
प्रति कुपित होते हैं । सुग्रीव रामके पास आकर क्षमा मांगता है और अपने सेवकोंको सीता का पता लगानेका श्रादेश देता है। रत्नजटीने पता दिया कि सीताको लंकाधिपति रावण हर कर ले गया है। रावणका नाम सुन विद्याधरोंके होश ठण्डे पड़ जाते हैं। रामके प्रबल आग्रह वश वानर यह कहकर सहयोग देनेको तत्पर होते हैं कि रावणकी मृत्यु कोटिशिला उठाने वालेके द्वारा होगी ऐसा अनन्तवीर्य मुनीन्द्रने कहा था सो यदि आप लोग कोटिशिला उठा सकें तो हम रावण के साथ युद्ध करनेके लिए उद्यत हो सकते हैं। लक्ष्मणने उसी समय जाकर कोटिशिला उठा दी। वानर उनकी शक्तिका विश्वास कर युद्ध के लिए तैयार
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