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पद्मपुराण
उनचासवाँ पर्व सुग्रीवने हनूमान्को बुलानेके लिए अपना कर्मभूति नामका दूत भेजा। इसने हनूमान्से खरदूषण
की मृत्युका समाचार कहा जिससे उसके अन्तःपुर में शोक छा गया। विट सुग्रीवके नाशका समाचार सुन हनमान्की दूसरी स्त्री पद्मरागा प्रसन्न हुई। रामकी महिमा सुन हनुमान् उनके समीप आया और विनीत भावसे उनकी स्तुति कर सीताके पास राम संदेश भेजने के लिए लंका गया।
२६६-३०७ पचासवाँ पर्व लंका जाते समय हनूमान् मार्गपतित मातामह महेन्द्र के नगरमें पहुँचा वहाँ उसके द्वारा किये हुए
माताके अपमानका स्मरण होनेसे उसे बहुत रोष उत्पन्न हुआ जिससे उसने उसे बलपूर्वक परास्त किया । हनूमान्का आदेश पाकर राजा महेन्द्र अपनी पुत्री अञ्जनाके साथ मिला । ३०८-३१२
इक्यावनवा पर्व दधिमुख द्वीपमें स्थित मुनियों के ऊपर दावानलका उपसर्ग हनूमान्ने दूर किया। समीप स्थित
गन्धर्व-कन्याओंने विद्यासिद्ध हो जाने के कारण हनूमान् के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। रामको गन्धर्व-कन्याओंकी प्राप्ति हुई।
३१३-३१६ बावनवा पर्व अचानक अपनी सेनाकी गति रुक जानेसे हनूमान् आश्चर्य में पड़ा। आगे बढ़ कर उसने
मायामय कोटको ध्वस्त कर दिया । और थोड़ी देरमें हो वज्रायुधको प्राणरहित कर दिया। तदनन्तर उसकी पुत्री लंकासुन्दरीके साथ हनूमान्का विवाह हुआ ।
३१७-३२३ पनवा पर्व हनूमान् लंकामें जाकर सर्व प्रथम विभीषणसे मिलता है और रावणके दुष्कृत्यका उसे उपालम्भ
देता है । तदनन्तर विभीषणकी विवशताका विचार कर प्रमदोद्यानमें जाता है । वहाँ अशोक वृक्षके नीचे सीताको देख अपने जन्मको सफल मानता है । वह उसकी गोदमें रामप्रदत्त अंगूठी छोड़ता है। सीता उसे बुलाती है। वह प्रकट होकर विनीतभावसे सीताके समक्ष श्राता है और सीताके लिए रामका संदेश सुनाता है। ग्यारहवें दिन रामका संदेश पाकर सीता आहार ग्रहण करती है। मन्दोदरी श्रादिके साथ हनूमान्का संघर्ष होता है । हनूमान् उद्यानको क्षति ग्रस्त करता है। बन्धन बद्ध होने पर रावण के समक्ष उपस्थित होता है परन्तु अन्तमें बन्धन तोड़ तथा लंकाको नष्ट भ्रष्ट कर रामके पास वापिस आ जाता है । ३४२-३४३
चौवनवाँ पर्व वापिस अाकर हनुमानने रामको सीताका सब समाचार मनाया उसका चडामणि उन्हें अर्पित किया। साथ ही सीताकी दयनीय दशाका भी वर्णन किया । चन्द्रमरीचि विद्याधरकी प्रेरणासे उत्तेजित हो सब विद्याधरोंने रामको साथ ले लंकाकी ओर प्रस्थान किया।
३४४-३५० पचपनवाँ पर्व लंका के समीप पहुँचने पर राक्षसोंमें क्षोभ उत्पन्न हो गया । इन्द्रजित् और विभीषण में पर्याप्त वाक्संघर्ष हुआ। रावणसे तिरस्कार प्राप्तकर विभीषण लंका छोड़ कर रामसे श्रा मिला । ३५१-३५७
छप्पनयाँ पर्व रावणकी अक्षौहिणी आदि सेनाका वर्णन ।
३५८-३६०
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