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मुंहता नैणसी · ख्यात
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[ ५१ आसकरणनै पूछे नै नवेड़ो' लीजं । तिन दिन राजनं म्हें कह्यो नहीं, पिण हमें साच लीजै' ।” तरै आसकरण झूठो हुवो । तरै मूळराज रतनसी जांणियो - "ओ मांहरो' दुसमण थो सु म्हांरो भलो चाकर गमायो । तिथी' इणां' ठाकुरांरै माहोमां है' असुख' घणो वधियो " । तरै जसहड़ोतां जांगियो - "म्हांसूं बुरो मांने तो म्हे क्यूं मरां " ? तरै दो नीकळण मांहै नहीं । तरें प्रासकरण सूतानूं बांध मांचा मांहै घात नै ले नीसरियो । औ ठाकुर परा गया । दूदो पारकर परणियो तो, उठ गया छै" । पर्छ मूळराज जैतसी गढ विढिया " । पछै रावळ जैतसी रांम कह्यो । पछे मूळराज रावळ हुवो । रतनसीनूं रांणाईरो विरद” । मूळराज वरस १ नै मास ६ राज कियो । वरस १२ बारै गढ विग्रहियो रह्यो " । पछै गढ मांहिलो सांमांन तूटो, बीजो" धांन नहीं, काळबी ज्वार " मास ६ री हुती, सु मूळराज रतनसी कह्यो - " खावां नहीं; असत धांन छै ।" तरै मरणरो मतो कियो । हो - पांच कले परवारसूं, रावळ आलोचेह | ग्रांपै” मर गढ आपस्यां", विजड़ा" वार करेह ॥ १
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वात
कमालदीनूं कहाड़ियो जु - " थे म्हांरा भाई हुवा था, सु आज भाईयांरी वेळा छै, म्हांरो बीज उबार राखो ।”
निर्णय । 2 उस दिन ग्रापको मैंने कहा नहीं, परन्तु अब सच बात क्या है, इसका पता लगावें । 3 हमारा । 4 हमारा। 5 खो दिया, दूर कर दिया । 6 इससे । 7 इन 1 8 परस्पर, आपसमें । 9 शत्रुता । 10 बढ गया । II तब जसहड़ोतोंने विचारा | 12 हमसे वे शत्रुता मानते हैं तो फिर हम क्यों मरें । 13 दूदाका विचार तब भी वहांसे निकलनेका नहीं । 14 तब ग्रासकररणने उसे सोते हुएको बाँध दिया और खाटमें लेकर निकल गया । 15 ये सरदार चले गये । 16 दूदा पारकर व्याहा था, इसलिये वहां चला गया । 17 फिर मूलराज और जैतसीने गढ़में युद्ध किया । 18 जिसके वाद रावल जैतसी मर गया । 19 रतनसीको रानाकी पदवी और विरुद | 20 बारह वर्ष तक गढ घिरा रह कर युद्ध चलता रहा । 21 दूसरा । 22 काली ज्वार । 32 सत्वहीन धान्य है । 24 तव मरनेका निश्चय कर लिया । 25 अपन 1 26 देंगे। 27 तलवारोंसे । तुम हमारे धर्म-भाई हुए थे सो आज भाइयोंकी सहायता करनेका समय है, हमारा बीज (वंश) बचा कर रखो ।