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मुंहता नैणसीरी ख्यात
[२३३ युं दूहो कह्यो सु न छै ।" तरै मावल दूंहो कहै
हिरणी माथा ढळ गई, किरती गई उलत्थ ।
नारी नरां सनाहिंयां, पड़े झड़ोफड़ हत्थ ।।
मावल नै लाखै रात तो इण भांत वात कीवी। रात थी सु वोळाई।
परभात मावलनूं कह्यो-"अंक वार हूं केलाकोट जाय खबर ल्याऊं।" तरै मावल कह्यो-“भलां जावो।" तरै साहणीनूं कह्यो"कोई आपणै इसड़ो घोड़ो छै सु चढनै प्राथण केलाकोट जाईजै ।” तरै इण कह्यो-"छै तो घणाई । कोई पतवांण जोयो न छै ।” तरै कह्यो--"ऊठ मंगोवं ।" तरै ऊंठ १ मंगायो। लाखै घरांनूं चलायो, सु केलाकोट कोसां १० तथा १५ आया, तरै लाखै ऊंठनूं कांब वाही, सु करहो करूंकियो। सु सोढी सूती थकी सुणियो । तरै हो कह्यो
झीणो करह करूंकियो, रीणो मंझ करांह ।
फूलांणी कांबेटियो, ऊमाहड़ो घरांह' ।। - सोढी डूंम मनभोळिया यूँ कह्यो-'लाखोजी पाया । आवतारी अवाज सुणूं छ ।तरै डूंम कह्यो-“सौ कोस वंगो छै । हमार हीज कठा प्रावै13 !” इतरो कहिनै पाछा बेऊ सुय रया' । अतरै पोहर १ लाखोजी ऊंठ चढिया प्राय ऊभा रया15 । लाखो उतरतो
I आपने जो दोहा कहा है वह यों नहीं है । 2 हिरणी मध्याकाशसे नीचे चली गई है और किरती उलट गई है। ऐसे समयमें स्त्री-पुरुषोंमें कवचधारियों की भांति काम-युद्ध हो रहा है। 3 शेष रात व्यतीत की। 4 कोई अपने ऐसा घोड़ा है जिस पर चढ कर के संध्या तक केलाकोट पहुंचा जा सके। 5 हैं तो बहुत । 6 किन्तु परीक्षा करके देखा नहीं है । 7 सो केलोकोट १० या १५ कोस दूर रह गया-वहां तक पहुंच गये। 8 तव लाखेने ऊंटके वेंत मारी। 9 सो ऊंट बलवलाया। 10 सो सोती हुई सोढीने सुना। I घरको शीघ्र पहुँचनेके लिए उत्सुक फूलके पुत्र लाखाने ऊंटको वेंतसे मारा है। अत: उसका वह शिथिल (थका हुआ) ऊंट अन्य ऊंटोंके बीच बलवलाया है। 12 आते हुएकी आवाज सुन रही हूँ। 13 यहांसे बंगा सौ कोस दूर है। अभी कहांसे आजावे ! 14 इतना कह कर दोनों फिर सो गये। 15 इतनेमें एक पहरके बाद ऊंट चढे हुए लाखाजी आ खड़े हुए।