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मुंहता नैणसीरी ख्यात
[ २७३ कह्यो-'मामाजी ! मैं रावळा मूंग खाधा'; हूं रावळे मुंहडै आगे लड़ीस ।'. ताहरां राखायत जण-जणरै मुंहडै आगै लड़तो दीसै ।
राखायत काम आयो । लाखो काम आयो । राजा सिंघसेन लाखैनूं . मार अपूठा पधारिया । चावड़ारै पाटण पधारिया ।
पछै लाखैरी मा, लाखैरो राजलोक अायो । खेत मांहै लाखो पोढियो छै' । जीव नहीं नीसरियो छ । ताहरां राखायत निजीक पड़ियो दीठो । ताहरां लाखैरो राजलोक कहण लागो-'नो हरांमखोर' अठै क्युं पड़ियो ? दूर करो। तरै लाखोजी बोलिया-'यो राखायत सांमधरमी11 छै। हरांमखोर नहीं छै । माजी ! आ ग्रीझ देखो पड़ी छ, सु म्हारै मुंह ऊपर आय बैठी, अांख काढणनूं । ताहरां राखायत दीठी । आपरो फीफर वाढ़ि अर ग्रीझ मारी छै । नहीं तो ग्रीझ म्हारी आंख काढत । थे मोनूं कठे देखता ? माजी ! थे म्हारो मुंह दीठो जीवतैरो। हिवै राखाइत म्हारै कनारै ल्यावो", ज्युं हूं हाथ लाऊं, ज्यु इयनूं मुगत हुवै ।' 'ताहरां राखाइतरो जीवनीसरियो नहीं हुतो। ससकतो हुतो' । ताहरां लाखैजी राखाइत नजीक अणायो', माथा ऊपर हाथ दियो । जीव मुक्त हुवो।। इतरै पण लाखैजोरो जीव मुक्त हुवो। राजलोक' सत्यां हुई। लाखोजी सरग पधारिया । राखाइत पण सरग लोग हुवो। .
ताहरां ऊंचा महल सोनैरा रतनमय कांगुरा, तियां घरां' तो
1 मैंने अापका अन्न खाया है। 2 मैं आपके मुखके धागे लड़गा। 3 तब राखायत हर एकके मुखके आगे लड़ता हुआ दृष्टि में प्राता है । 4 राखायत मारा गया । 5 सीहोजी लाखाको मार कर पीछे लौटे। 6 जनाना (स्त्रीजन) आया। 7 रणक्षेत्र में लाखा सोया हमा है। 8 जीव नहीं निकला है। 9 तब राखायतको समीपमें पड़ा देखा। 10 अधर्मी (प्रस्वामीभक्त)। II स्वामीभक्त है ! 12 हे भाताजी !। 13 गृध्र पक्षी। 14 अांख निकालनेके लिये । 15 फेफड़ा काट कर । 16 आप मुझको कहां देखतीं ? I7 अब राखा. यतको मेरे पास लायो। 18 ज्योंहीं मैं इसके हाथ लगाऊंगा, त्योंही इसके प्राण निकलेंगे। 19 मृत्युके सूचक अंतिम श्वास लेता था। 20/21 तब लाखाजीने राखाइतको समीप मंगवाया, सिर पर हाथ लगाया, तब राखायतका जीव निकला। 22 स्त्रीजन। 23 अपनेअपने पतियोंके साथ अग्निमें जल गई। 24 स्वर्ग । 25/26 उन घरोंमें तो लाखाजी गये।