Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 02
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 337
________________ अथ वात रावजी रिणामलजीरी लिख्यते एकदा प्रस्ताव' । राव श्री चूंडैजी मोहिलरै कहै रिणमल कुंवर तेडिनै विदा दीधी । ताहरां रिणमलजी हालियो। रजपूत भलाभला हुता सु रिणमलरै साथै हुवा | ताहरां रिणमलजी ५०० असवारांसू हालियो। ताहरां रिणमलजी धणले गांम जाय उतरियो, नाडूलरै । नाडूल सोनिगरा राज करै छै । रिणमलजी गाडा ले जाय धणलै छोडिया छै । .. अठै रिणमलजीरै तीन वार भुजाई होवै। कड़ाह थाट रहै । पाठ-पोहर सिकार खेलै । वडी साहिबो” । ... ताहरां सोनगरै सुणियो । ताहरां सोनगरै चारण मेल्हियो । कह्यौ-'जायनै खबर करो। रिणमलरै कितरोहेक° साथ छ ?' ताहरां चारण आयो । प्रायनै1 रिणमल आसीस दीधी । गढवीन14 कन्है15 बैसांणियो । सोनगरां की सु वातां पूछी। तितरै भूजाईरो पधारो हुवो"। रिणमलजी ई आया। चारण→ साथै ले आया । भूजाई-घण-देवजी-रोटा, सोहिता । ईयै भांत चारण मुंजाई .. जीमियो । कह्यो-'गढवी ! तो→19 सवारै विदा देस्यां ।' तितरै दिन ऊगो । अर प्राय सिकारियां कह्यो-'राज ! वांसोर डूंगरयां - . . .५ वाराह रोकिया छै। तुरत चढो।' चढिया। जाय पांचै वाराह 1 एक समयकी बात। 2 राव श्री चूंडाजीने मोहिलरानीके कहने से कुंवर रिणमलको बुला कर के निकाल दिया। 3 तब रिणमलजी रवाना हुए तो जो अच्छे-अच्छे राजपूत थे वे सब रिणमलजीके साथ हो लिये। 4 तन रिणमलजी नाडूलके धरणले गांवमें अाकर ठहरे। 5 रिणमलजीने अपने गांड़े लेजा कर धणलेमें छोड़े। 6 यहां रिणमलजीके दिनमें तीन बार पक्वान्न-रसोई बनती थी। हरदम कड़ाह चलते ही रहते थे। 7 वडा वैभव और ठाट-बाट । पाठों पहर शिकार खेलते हैं। 8 सुना। 9 तब सोनगरोंने एक चारणको भेजा। 10 कितना सा । II आकर। 12 रिणमलको। 13 दी। 14 चारणको। 15 पास । 16 बठलाया । 17 इतनेमें भंजाई तयार होकरके आई । 18 मोयन प्रादि मसाले देकर बनाई हुई एक प्रकारकी बढिया मोटी वाटी। 19 तेरेको । 20 कल सुबह । 21 उदय हुआ। 22 पहाड़ियोंमें ।

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