Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 02
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 348
________________ ३४० मुंहता नैणसीरी ख्यात कहियो-'अका ! क्यों ?' कह्यो-'जी धरती सीसोदिया हं गई, राठवड़े लई। ते मोनूं दुख पावै छ ।' ताहरां रांणो बोलियो-'अका ! रिणमलजीनूं मारस्यो ?' कह्यो-'दीवांणरा पूठे हाथ हुसी तो मारस्यां।' ताहरां रांण हुकम कियो । 'रिणमलनूं मारो'। युं रोज अालोच करै । एक दिन राव रिणमल तळहटी पधारिया हुता। उठे आपरा लोक सर्व एकठा मिळिया । ताहरां रिणमलजीरो डूंम हुतो सु वोलियो -'याज काल्हि दीवांणरै अर थांहरै किण ही सौं चूक छै । ताहरां रिणमलजी कह्यो-'म्हारै तो चूक किण ही सौं नहीं।' तो कहियो-'दीवांणरै थांहीजसौं चूक छै'। जोधो कुंवर तळहटी राखज्यौ, थे गढ ऊपर रहो छो, तो कुंवर तळहटी राखज्यो ।' ताहरां रिणमलजी तो गढ ऊपर रहै । कुंवर सरव तळहटी रहै । एक दिन रांणो कुंभो बोलियो-'रावजी ! जोधो प्राज-काल न दीसै, कठै छै ? ।' रावजी वोलिया-'तळहटी छ ।' घोडांनं चारै छ। तो कह्यो-'ऊपर बोलावो।' ताहरां कह्यो-'वोलावस्या ।" ताहरां जोधेनूं राव रिणमलजी कहाड़ियो 11-'म्हे तेडावां तोई जोधा तूं मतां आवै ।' ताहरां एक दिन राणे कुंभ महप पमार, अकै चाचावत ईयां पालोच कियो । आज रिणमलनूं मारस्यां । रातरा पोडिया मारस्यां15।' रातरो चूक कियो । रात कुंभो पोढियो ____उसने कहा कि धरती सिसोदियोंसे गई, राठोड़ोंने ले ली; इस वातका मुझको दुख हो रहा है। 2 अवका ! रिणमलको मार दोगे ? तो उसने कहा कि पीठ पर यदि दीवानके हाथ होंगे तो मार देंगे। 3 एक दिन राव रिणमलजी तलहटी गये हुये थे। 4 वहां उनके सभी प्रादमी इकट्ठ होकर मिले। 5 उस समय रिणमलजीका एक डूम था सो वह बोला। 6 अाजकल दीवानको अापके किन्हीं पर नाराजी है (किसीको छलसे मार देनेकी बात सुनी जाती है।) 7 दीवानका यह धोखा आप हीके साथ है। 8 आप गढ पर रहते हो तो कुंवरको तलहटी में रखना । 9 जोधा आज-कल दिखाई नहीं दे रहा है, कहां है ? 10 बुला लेंगे। II तब रिणमलजीने जोवाको कहलवाया । 12 हम बुलावें तो भी जोधा तू पाना मत। 13 तव एक दिन राणा कुंभा, महपा पवार और अक्का चाचावत, इन सवने मिल कर परामर्श किया। 14 आज रिणमलको मार देंगे। I) रातको सोते हुएको मार देंगे। 16 रातको धोखा किया।

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