Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 02
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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मुंहता नैणसीरी ख्यात
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दूहा आगै सूर न काढिया, तुंगम काढी आय । जे मिस रांणो संजड़ी, लेई रिणमल राय ।। १ राय रिणमल नींद भरै, आवध लोह घण ऊबरै । कटारी काढी मरद घणो, तिम प्रागै सूर न तुंग किणी ॥२ तो दिन्नं मेवाडं, तो वियप्प कापियं सीसं । ना ऊ रयण वहीजै, वैसास कुंभकरणं कृतघ्नं ।। ३ जे रिणमल होवत दळ अंतर, कुंभकरन्न वहंत केणि पर । माथा सूळ सही सुरतांणां, प्रो समुंद्रां वरतावत आणां ॥४
जे वरतावी आण बेहूं सिंघां वीचाळे , हिंदू अनै हमीर मीर जे लुळिया भाळे । जे भग्गो पीरोज, खेत्र जेत्राई खेड़े ,
जे मारै महमंद, गज मारै संभेडै । रिणमल्ल राव विसरांमियौ, कुंभा की मन विक्कसै ? छळियो छदम से कूड़ कर, जेम सीह प्रागै ससै ॥ १
रावजी श्री रिणमलजीरी वात संपूर्ण ।
।। शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ।।
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(इन छन्दोंमें राव रिणमलकी वीरताका, मोकल और कुंभकर्णके साथ मेवाड़में किये गये राव रिणमलके उपकारोंका एवं कुंभकर्णकी कृतघ्नता और विश्वासघातका वर्णन किया गया है। छन्द अशुद्ध हैं ।)

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