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मुंहता नेणसीरी ख्यात
[ २७१ ताहरां वळे' लाखोजी समुद्र पधारिया, रजपूतां समेत । ताहरां राखायतनूं अपछरावां तखत बैसाण नै चलाय दियो, सु तखत बैठो राखायत आयो । प्राय लाखाजीनूं मिळियो। ताहरां लाखाजी पूछियो-'क्युं भाणेज ! तमासो दीठो ?' ताहरां कह्यो-'मामाजी ! अपछरावांरा मोहल दीठा ।' ताहरा लाखैजी कहियो-'भांगेज ! बापरै वैर, नै सामरै काम जिकै आपरौ जीव' दियो, सो वां मोहलां1 जावस्यै ।' अरु कहियो-'भाणेज ! म्हेई रातरा प्रोथ जावां छां" । तमासो देखअर आवां छां, तै पोजगै लिये “ मुह उतरियो दीसै छै ।' ताहरां भाणेज पूछियो-'मामाजी ! उला' मोहल दीठा, पण पैला महल घणा सखरो", अतही ऊंचाती दीठा, तिकै महल कियैरा छ ?' ताहरां लाखैजी कहियो-'घणो सांम-धरमी मरै, तिकेरा महल वे छै । वापर वैर नै धणीरै कांम प्रावै"; तियांरी भाणेज ! वा जायगा छै । ताहरां राखायत वात सांभळ चुप कर रह्यो । इण प्रस्ताव रात पड़ी । ताहरां राखायत लाखैजीरी असवारीरो घोड़ो" सांहणी" कना ले, अर राजा सिंघसेन अर चावड़ा कनै गयो । जाय मिळियो नै कह्यो'श्रा वेळा छै। जे लाखैनै मारस्यो तो वेगा हालो।' ताहरां राजा सिंघसेन नै सोळंकियां चावड़ांनं चाढ़िया। रात थकी असवार कराडिन अपूठो आयो । घोड़ो ताजो कर ले जाय, सांहणी 4
I फिर। 2 लकड़ीके पट्ट पर बिठला कर। 3 तमाशा देखा। 4 अप्सरानोंके महल देखे। 5-6 पिताके बैरके बदले में और स्वामीके लिये। 7-8 जिन्होंने अपने प्राण दिये हैं। 9 वे। 10-II उन महलोंमें, जायेंगे। 12 हम भी रातको वहाँ जाते हैं। 13-14 उस जागरणके कारण | 15 इधरकी तरफ के । 16 बहुत ही अच्छे हैं। 17 अत्यन्त ही। 18 ऊंचाई पर देखे । 19 किसके हैं ? 20 अत्यन्त ही। 21 स्वामी-धर्मसे मरते हैं उनके महल वे हैं। 22 बापका वैर लेवें और अपने स्वामीके काम आवें। 23 भानजे ! उनकी वह जगह है। 24 तब राखायत बात सुन कर चुप हो गया। 25 इसी प्रसंगमें रात हो गई। 26 लाखाके चढ़नेका घोड़ा । 27-28 घोड़ेके तबेलेके दरोगेके पाससे । 29 राव सीहा और चावड़ोंके पास गया । 30 तब राजा सिंहसेन और सोलंकियों चांवड़ोंको युद्धके लिए रवाना किया। 31-32 रातमें ही सबको चढ़वा कर पीछा आया। 33 घोडेका श्रम रहित कर के। 34 तबेलेके दरोगेको।