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मुंहता नैणसीरी ख्यात अर ' रजपूत नीसरियो छै', तियांसू दोख मतां राखै । अ थारै वडै काम पावसी । जेठी घोड़ो छै सु सिखरै उगमणावत देई । अर रजपूत दुचिता छै सु तूं सुचिता करै । इयै मोहिल सरव दुहविया छै'।' ताहरां कह्यो-'म्हैं कान्हैनूं टीको कह्यो छै, सु इयैनूं काहूनीरै खेजड़े ले जायनै ईयरै माथै अरळ देईस । ताहरां रिणमल जांणियो'कांन्है राव मगरो दियो । रिणमलनूं रावजी विदा दीनी ।
रिणमलजी नीसरियो । रजपूत सरव नीसरिया । सिखरो उगमणावत इंदो, ऊदो त्रिभुवणसीयोत राठोड़, काळो टीवांणो, अ ठाकुर भेळा नीसरिया छै1 । जावतां एकै जायगां अरहट वहतो दीठो । तेथ पाया । आय अर घोड़ा पाया। घोड़ारा मुंह छांटिया। हाथ धोया । अांख्यां छांटी अर अमल किया । पांणी पियो । तेथ सिखरो उगमणावत हो कहै
काळो काळे हिरण जिम, गयो टिवाणो कूद । . .
आयो परव न साधियो, त्रिभुवण थारै ऊद ॥ १ ताहरां ऊदै अर काळे कह्यो-'म्हे सिखरै रै साथै नहीं जावां, • भांडसी" । हालो, अपूठा जावां ।' जितरै पूनो उठे सांमो आयो । पूनो दोला गोहिलोतरो बेटो। इयै सिखरै कह्यो'-'थे घिरो, अपूठा
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I ये। 2 निकल गये हैं। 3 उनसे वैर मत रखना। 4 ये तेरे बड़े काम आयेंगे। 5 जेठी घोड़ा है उसे सिखरै उगमणावतको दे देना। 6 और जो राजपूत नाराज हैं उन्हें तू खुश कर देना। 7 इस मोहिल रानीने सवको नाराज कर दिया है। 8 तव .... कहा-'मैंने कान्हेको टीका देनेका निश्चय किया है, सो इसको काहूनीके खेजड़े लेजा कर ... इसके मस्तक पर तिलक दूंगा। (उत्तरदायित्व इसके सिर पर दूंगा।) 9 तव रिणमलने जाना कि कान्हेको रावने मगरा प्रदेश भी दे दिया। To रावजी ने (चूंडाजीने) रिणमलको. जानेकी आज्ञा दी। II ये सभी ठाकुर साथ निकले हैं। 12 जाते हुए मार्गमें एक स्थान . . पर रहँट चलता हुआ देखा। 13 वहां आये। 14 अांखें छांट कर (हाथ-मुंह धो कर) अफीम लिया। 15 वहां सिखरा उगमरणावत एक दोहा कहता है। 16 दोहार्थ'काला टिवाणा तो काले हरिणकी भांति कूद गया (अवसर खो दिया) और हे त्रिभुवन तेरे पुत्र ऊदाने हाथ आये पर्वको भी नहीं साधा।' . 17 तब ऊदाने और कालाने कहा'अपन सिखरेके साथ नहीं चलें, वह अपनेको वदनाम करेगा।' 18 चलें; लौट जायें । 19 इतनेमें पूना वहां साम्हने या गया। 20 इसको सिखरेने कहा। . . . .